पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- ये गुजरात देवाभाई कुणबी. गुजरात के अघ प्रोगुसांईजी के सेवक देवाभाई कुनधी, गुजरात के, तिन की वार्ता को भाष कहत है भावप्रकाश-ये राजस भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'रतिशूरी है ये पहिले द्वारिका लीला में 'तन्मध्या' की सखी ही। तन्मध्या तें प्रगटी है सो तन्मध्या सत्यभामा की सखी हैं । तिनके वे भावरूप हैं। सो इनकी जा प्रकार जलीला में प्राप्ति भई, सो उपर कहि आए हैं। में एक कुनबी के जन्मे । सो इन को पिता खेती करतो । पाछे ये ह बरस बारह के भो तब तें सेती करन लागे । ता पाछे इन को व्याह भयो। चारि वेटा हू भए। घात प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे । सो मारग में देवाभाई के गाम में डेरा किये । सो देवाभाई वेष्णव के संग श्रीगुसांईजी के दरसन कों आए। तव श्रीगुसांईजी सों विनती कीनी, जो - महाराज ! कृपा करि के सरनि लीजिए । तव श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो - तुम स्नान कर आओ। तब देवाभाई और देवाभाई की स्त्री दोऊ न्हाय आये । तब श्री- गुसांईजी ने कृपा करिके वे दोऊन कों नाम-निवेदन करवायो। और देवाभाई के घर के और दस वीस हते तिन को कृपा करि के नाम सुनायो । तव देवाभाई ने विनती कीनी, जो - महाराज ! कृपा करि कै श्रीठाकुरजी पधराय दीजिए। और सेवा की रीति भांति कृपा करि समझाइए। तब श्रीगुसांईजी कृपा करि के सेवा पधराइ दिये । और सेवा की रीति भांति सब सिखाई। पार्छ श्रीगुसांईजी ब्रह्मसंबंध को तात्पर्य देवाभाई को समझाइ कह । तब देवाभाई तसे ही सेवा करन लागे । वार्ताप्रसंग-२ और उन के बेटा हते सो खेती करते । और देवा भाई तो भगवद् सेवा करते । सो देवाभाई नित्य दोइ वैष्णव कों १.