पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

९० दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता महाप्रसाद लिवाय के पाछे आप महाप्रसाद लेते ।' और जितनो द्रव्य कमावते वह सव श्रीगुसांईजी कों पधराय भेंट करि देते । और गृहस्थाई में खरच प्रमान सों करते । और आप सदा सुलभ स्वभाव सों ही रहते । और ब्रह्मसंबंध करें पाछे जो द्रव्य कमावते वह. सव श्रीगुसांईजी को जानते । और ठौर वोहोत खरचते नाहीं। या द्रव्य सों वोहोत डरपते। सो ऐसें श्रीठाकुरजी की सेवा करते । सो श्रीठाकुरजी सानु- भावता जनावते । व्रजलीला को अनुभव करावते । सो वे देवाभाई ऊपर श्रीगुसांईजी सदैव प्रसन्न रहते । भावप्रकाश-या वार्ता को अभिप्राय यह है, जो - वैष्णव निवेदन को सदा सर्वदा स्मरन राखे। अपने द्रव्यादिक को और ठौर खर्च करे नाहीं। काहेत? जो - ये प्रभुन को द्रव्य है । तातें अन्य विनियोग होन न दे। या प्रकार अनन्य व्है सेवा करे तो ठाकुर निश्चय अनुभव जतावे । सो वे देवाभाई श्रीगुसांईजी के ऐसें परम कृपापात्र भगवदीय हते । तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए । वार्ता ॥१०॥ अब श्रीगुसांईजी के सेवक एक वैष्णव बनिया, गुजरात में रहतो, ताकी वेटी, जाको रामानदी सों ब्याह भयो, तिनकी वार्ता को भाव कहत हैं- भावप्रकाश-ये बनिया की बेटी तामस भक्त हैं । लीला में इन को नाम ' कृष्णानुचरी' है । सो ये पहिले द्वारिका लीला में ' तन्मध्या' की सखी ही। उन तें प्रगटी हैं। तातें उनके भावरूप हैं। ये जा प्रकार ब्रज-लीला में प्राप्त भई, सो आगें कहि आए हैं। वार्ता प्रसग-१ एक बनिया वैष्णव हतो । सो गुजरात में रहत हतो। श्रीगुसांईजी कौ परम कृपापात्र भगवदीय हतो। सो वाके घर बेटी जन्मी । सो एक समै श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पधारे हे।