स्त्री-पुरुप क्षत्री. जो -हीरान की धरती पहचानते १०१ राजा उन दोऊ भाईनकी बोहोत कानि राखतो । मिलिके चलतो। सो उन दोउ भाईन के घर राजा एकवार दोय वार नित्य आवतो। उनही सों पूछि के आचरन करतो । सो वे कहते तसेई राजा करतो । सो ऐसें करत उन दोऊ भाई वैष्णवन के संग तं राजा भलो वैष्णव भयो। भावप्रकाग-या वार्ता को अभिप्राय यह है. जो - तादृगी वैष्णव की संगति करनी । सो वा राजा की बुद्धि सत्संग कनिकै फिरी । तामो मन्संग एसो पदार्थ या संसार में है। सो वह राजा श्रीगुसांईजी को ऐसो परम कृपापात्र भगवदीय हतो । तातें इनकी वार्ता कहां ताई कहिए । वार्ता ॥१०४॥ अव भीगुमाईजो के सेवक स्री-पुरुष क्षत्री, प्रयाग के. दीरान की धरती पहचानते, तिनको धार्ता को भाष कहत हैं। भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं । लीला में पुन्य को नाम 'छाया है, और स्त्री को नाम 'माया ।सो 'छाया'-'माया दोऊ श्रीयसोदाजी की मग्वी हैं। नंदालय में श्रीठाकुरजी के संग रहति हैं । जैसे मनुष्य की छाया म्हति है। ता भांति । ये दोऊ 'कुंजरी ने प्रगटी हैं. तातें उन के भावरूप है। सो ये दोऊ प्रयाग में क्षत्रीन के जन्मे । पाठे यग्म आठ-दम के भए । तब माता-पितान ने दोऊन को व्याह कियो । सो एक समै श्रीगुमाईजी आप प्रयाग विराजत हुने । तब मकरसंक्रांति का पर्व आयो। मो चागे मम्प्रदाय के आचार्य, सत-महंत आदि त्रिवेनी म्नान को प्रयाग आए । ता नमै श्रीगुसांईजी हु त्रिवेनी न्हान कों पधारे। तर चागे सम्प्रदाय के आचार्यन ने श्रीमाईजी को नमस्कार किये । ता पाछे सबन ने मिलिक विनती कीनी. जो-महागज: प्रथम स्नान आप कीजिए । काहेर्ने ? जो - श्रीआनार्यजी महाप्रभुन ने काय गजाकी सभा में वैष्णव धर्म की रक्षा कीनी है । मायाघाट को मंटन किया है। नांतर आज वैष्णव सम्प्रदाय को जानतो नाहीं। नो आगे ऐमो पर आयो तब श्रीआचार्यजी आप प्रथम स्नान किये। मम मम्प्रदाय वान्न ने आप को तिलक किया है । नातें आप प्रथम न्नान कीजिए । तर श्रीगुसांईजी आप जानें
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