१०२ दोसी पावन वैष्णवन की वार्ता वैष्णव सम्प्रदायवारेन के आग्रह तें प्रथम स्नान किये । ता समै विष्णुस्वामि सम्प्रदाय वारेन ने श्रीगुसांईजी को आचार्य - तिलक कियो । ता सम संख की ध्वनी चारों दिसान में होन लागी । झालर घंटा वाजन लागे। सो ऐसो उत्कर्ष देखि बोहोत से देवी जीव सरनि आए । तिन में ये स्त्री-पुरुष हु श्रीगुसांईजी के सरनि आए । तव श्रीगुसांईजी दोऊन को आज्ञा किये, जो-तुम भगवत्सेवा करो। पार्छ श्रीगुसांईजी आप इन स्त्री-पुरुप को कृपा करि कै एक लालजी को स्वरूप पधराय दिये । ता पाछे आज्ञा किये, जो - तुम इनकी नीकी भांति सों सेवा करियो। और श्रीआचार्यजी की सेवकिनी एक क्षत्रानी प्रयाग में रहति हैं। ताकी संग करियो । सो वह तुमकों सेवा की सब रीति सीखावेंगे। तब पुरुपने श्री- गुसांईजी सों विनती कीनी, जो महाराज ! हम को तो आप के स्वरूप में आसक्ति भई है। तातें हम तो आपकी सेवा करेंगे। तब श्रीगुसांईजी वासों कहे, जो -- ये मेरो ही स्वरूप है । तातें तुम इनकी प्रीति पूर्वक सेवा करियो । और मैं तुम्हारे निकट ही हुँ । सो जब तू चाहेगो तब तोको मेरे दरसन होईगे । या प्रकार कहि श्रीगुसांईजी तो आप अड़ेल पधारे। और वे दोऊ स्त्री-पुरुष क्षत्रानी के सग तें सेवा की रीति सव सखे । पाछे भगवत्सेवा भाव पूर्वक करन लागे । सो इन को श्रीठाकुरजी सानुभावता जनावन लागे। और श्रीगुसांईजी हू दरसन देन लागे। घा प्रसग-१ सो वे खेती करते । सो एक समै वर्षा थोरी भई । सो इनके खेतमें अन्न कछु नाहीं भयो। पाछे हाकिम इन सों खेत कौ पैसा माँगन लाग्यो। तब इन कयो, जो- तेरे खेतमें तो अन्न कछु नाही भयो है। हम पैसा कहां तें देइ ? तव वा हाकिम ने जो घर में वस्तुभाव हती सो सब लुटि लीनी। पाछे घरमें कछु हू वस्तू नाहीं रही। सो यह स्त्री पतिव्रता हती। तब यह चरखा चलाय रुई ल्याय के कांतें। सो सूत होंइ ताकों बैचि के जो आवे तामें निर्वाह करें। पहिले श्रीठाकुरजी कों भोग धरि पाछे अपने पति के आगे धरि देंहि । सो पुरुष महाप्रसाद लै चुकै तब पति की पातरि में जो कछू रहें सो
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