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पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१२८

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एक ब्रजवासी, जाको श्रीगुसांईजीने परे करो सो गेल में तू हारि जाइगो। फेरि तू कहेगो. जो-मोको उठाय ले। तब मैं तोकों कैसे उठाउंगो? तब श्रीगोवर्द्धननाथजी आज्ञा किये, जो-भैया ! में तोकों उठायवे की नाहीं कहूंगो।जो-हो तो अपने पांवन सो चल्यो चलंगो । तव वा बजावसीने कह्यो. जो-आछौ । पाछे जब वह रसोई सों पहोंचि चुक्यो तव याकों श्रीगोवर्द्धननाथजी आज्ञा किये, जो - अरे भैया! तृ अधिकारी के पास जा । सो पत्र और महाप्रसाद की थैली ले आईयो । जो-आज आपुन सूरत को चलेंगे। तब वह ब्रजवासी अधिकारी के पास गयो। तहां जाँय कै कह्यो, जो-लारे भैया! पत्र लिख देउ । तव अधिकारी ने पत्र और महाप्रसाद की थेली वा ब्रज- बासी को दीनी। सो लेक ब्रजवासी विलछू पे आयो। तव श्री- गोवर्द्धननाथजी सों कह्यो. जो-भया ! मैं पत्र ले आयो हूं। तब श्रीगोवर्द्धननाथजी वा ब्रजवासी कों संग लेके पधारे। सो गेल में आय के श्रीगोवर्द्धननाथजी ठाढ़े रहे। पाछे कह्यो, जो-हो तो हारि गयो हूं। तव वा ब्रजवासी ने कह्यो, जो-में तो तोसों पहिले ही कह्यो हतो, जो-तू चले मति। हारि जायगो। अब तू कहत है जो-हों हारयो हुँ । तव श्रीगोवर्द्धननाथजी कहे. जो- अरे भैया! हो तो याही कहत हों। तृ चलि। यो कहि के श्रीगोवर्द्धननाथजी उठि चले। सो पूंछरी की ओर 'अपहरा कुंड हे तहां पधारे । तब तहां दिन मुंद्यो। तब श्रीगोवर्द्धननाथजी कह्यो.जो - भेया ! आज तो यहांई दिन मंचो। सो यहांई रात्रि परि गई है । सो इहांई सोवेंगे। सो काल्हि मूरत पहोंचेंगे। तत्र वा ब्रजवासीने कन्यो.जो - भलो। तब वह ब्रजवासी उहाई सोय रह्यो। और श्रीनाथजी तो आए मंदिर में पधारे । पानें