दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता राग. नाथजी अपने जन की लाज आपु राखत हैं। तातें वैष्णव को एक श्रीगोवर्द्धननाथजी को आश्रय राखनो । और जो - कदाचित् जीव को धीरज न रहे, और वह प्रार्थना करें तोऊ एक श्रीगोवर्द्धननाथजी सों करे । और सों सर्वथा न करे । और कछ मानता हू करे तोऊ देवदमन की करे । और की न करे। काहेत ? नो- गोकुल के कुलदेवता श्रीगोवर्द्धननाथजी आप हैं। सो गोकुल कहियत हैं, जो-भक्तकुल, ताके नाथ आप ही हैं। तासों उन के विनु और को आश्रय सर्वथा न करनो। काहे ? ये देवदमन हैं । सौ इन सब देवन को दमन किया है। उन तें यम-काल हु डरपत हैं । सो सूरदासजी गाए हैं, सो पद विलावल गोकुल को कुलदेवता प्यारो श्रीगिरिधरलाल । कमलनयन घनसावरौ वपु चाहु विसाल । वेगि करो मेरे कहे तुम पकवान रसाल । वलि मघवा वल लेत हैं कर करि घृत गाल । इनके दिये वाढ़ी हैं गैया बच्छ वाल । संग मिलि भोजन करत हैं जैसे पसुपाल ॥ गिरि गोवर्द्धन सेइये जीवन श्रीगोपाल । 'सूर' सदा डरपत रहे जातें यम-काल ॥ तातें देवदमन तें और कोऊ बड़ो देव नाही । सो वैष्णव को एक इन ही को आश्रय करनो, यह सिद्धांत भयो । ता पाछे वह बहू दूसरे दिन ते थोरो थोरो माखन भेलो करति जाती, सो न्यारौ एक वासन में धरति जाती। पाठे पांच-सात दिन में भैसि को माखन भेलो भयो। तब वा भैसि को एक दिन को सब माखन न्यारो काढ़ि राख्यो । और वह बटोरयो माखन सब एकठो करि कै घी तायो । पाठे वा दिन मन में निश्चय करी, जो-आजु यह सद्य माखन श्रीगोवर्द्धननाथजी कों आरोगाउंगी। सो बेगि बेगि रसोइ करि कै सास-ननद को तो छाक देन कों पठाई। ता पानें वह अपने घर तें माखन लेकै निकसन लागी। परि अपने
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