पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१३७

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१२४ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता ही स्नेह हतो। सो श्रीगुसांईजी के पास श्रीसुवोधिनी की कथा नित्य सुनते। ता पाछे घर आय कै दोऊ भाई अहर्निस विचार करते। और अपनी अपनी छाप कीर्तन करते । श्रीनाथजी के -पास हू वैठि कीर्तन करते, सुनते । सो ऐसें उन दोऊ भाईन के सदैव चली जाँय । परि लौकिक में काहू सों संभाषन हू नाहीं करते । और काहू सों वोलते नाहीं। उदर अर्थ भिक्षा मांगते। आसपास के गामन में तें। सो कोऊ जानतो नाहीं।जा गाममें भिक्षा करन आज जाँय ता गाममें फेरि कै नाहीं जाय । ऐसें निर्वाह करते । सो घर को आवे। सो घर में स्त्री-जन खरच को दुःख पावे । गाम के पटेल–चोधरी सवन मिलिकै इन कों खेत बोवाय दियो । सो धान आयो। वा धानकों गाम के लोग इन के घर ठलाय गए। तव स्त्रीजन तो वाहिर गई हती। तव इनने वह सब अन्न गायन को खवाय दियो । कछ मंगतान कों बाँट दियो। घर में कछु नाही राख्यो। ता पाछे पटेल-चोधरी सबन मिलि के इन सों कह्यो, जो-तुम्हारो और खेत वोयो है, आछो पक्यो है, परि तुम रखवारी करो। तब वे दोऊ भाई खेत पै गए। सो पक्षी-खग आवे तिन कों बरजे नाहीं । तोहू ऐसें करत खेत में सों अन्न बोहोत आयो । सो वे दोऊ भाई तो खेत पै बैठे भगवद्वार्ता करते। सो लोग सब कहे, जो-अब तुम्हारे खेत को तुम क्यों नाहीं काटत हो? अन्न-खरिहान में तुम डारत क्यों नाहीं ? परि वे कछु सुने नाहीं। और कछु उत्तर नाहीं देय। पाछे और लोगन सों कहि कै स्त्रीन ने अन्न सिद्ध करवाइ लीनों। परि इन में घर में राख्यो नाहीं। तब लोग सब कहते, जो-और लोग तो अपनी स्त्रीन सों खीझत