जन-भगवानदास दो भाई, गौग्वा क्षत्री १२५ हैं। परि ये तो कछ बोलत नाहीं। और ये दोऊ भाई तो काह की कोड़ी राखत नाहीं। जो सवहीन ते उदास रहत हैं। वार्ता प्रमग-२ और एक समे ये दोऊ भाई श्रीगुसांईजी के दरसन करिवे को प्रातःकाल के समय आए। ता समै सब सेवक जन श्री- गुसांईजी के द्वार दरसन को ठाढ़े हे । तव इन दोऊ भाईनने यह पद गायो। सो पद राग : विभास प्रात समय श्रीमुख देखन को सेवक जन सब ठाढ़े द्वार । जै जै जै श्रीवल्लभनदन दरसन दीजे परम उदार ॥ सुंदर स्याम सुभगता सीवा मेघ गंभीर गिरा मृदुधार । नैनन निरखे होत परम सुख श्रवन सुनाए वचन मुढार॥ श्रवन मंगल जग भवन मंगल रस पुरुषोत्तम लीला अवतार। 'जन-भगवान जाय वलिहारी अगनित गुन महिमा नहीं पार ।। यह पद जन-भगवानदास ने गायो। सो सुनि के श्री- गुसांईजी स्नान करि के श्रीनवनीतप्रियजी के मंदिर में पधारे। तव जन-भगवानदास दोऊ भाई साथ आए। सो मंगला के दरसन किये। ताही समे जन-भगवानदासने यह पद गायो । सो पद राग : विभास मंगल आरति कीजे भोर । मंगल जनम करम गुन मंगल मंगल जसोदा माम्खन चोर ।। मंगल मुकुट वेनु बनमाला मंगल रूप वरन बन-मोर । 'जन-भगवान जगतमय मंगल मंगल राधा जुगल किसोर ।।
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१३८
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