१४२ दोसौ वावन वैष्णवन की वार्ता दिन में ऊपरान कौ वड़ो ढेर भयो । सो एक दिन एक ब्रजवासी सों श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो - ऊपरा नाहीं है । सो नाव ले जाँइ के प्रयाग जाँइ के ऊपरा ले आउ। जो-दाम लगे सो दे आवो। तव ब्रजवासी एक बड़ी नाव ले जाँइ कै पार गयो। तव वा ब्रजवासी को देखि कै वा ब्राह्मनी ने जान्यो, जो - यह श्रीगुसांईजी कौ सेवक है । तव वा व्रजवासी सों श्रीकृष्ण-स्मरन करयो । तव पूछयो, जो- नाव लिवाय के कहां जात हो ? तव या ब्रजवासीने कह्यो, ऊपरा चहियत हैं, सो श्रीगुसांईजीन मोकों प्रयाग पठायो है। सो प्रयाग जाँइ के ऊपरा लाउंगो । तव वा ब्राह्मनीने कही, जो- मैं उपरा थापे हैं सो सव श्रीगुसांईजी के हैं। सो तुम ले जाऊ । मैं श्रीगुसांईजी की सेवकनी हूं। तब यह सुनि के वह व्रज- वासी वोहोत प्रसन भयो । तव वह ब्राह्मनी और वह ब्रजवासी दोऊ मिलि कै नाव ऊपरान सों भरे । सो नाव ऊपरान सों भरि गई। और उपरा बोहोत बचे । तव वा ब्राह्मनीने वा ब्रजवासी सों कह्यो, जो - नाव पार ले जाऊ । ऊपरा धराय कै फेरि एक बेर ल्यावो। तब सगरे उपरा जाँइगे। तब वा ब्रजवासी ने कही, जो भली बात है । पाछे वह नाव पार ले जाँइ पांच सात मनुष्य संग लगाय के वह ब्रजवासी उपरा ढोवन लाग्यो । तब वा ब्रज- बासी सों श्रीगुसांईजी आप पूछे, जो - अबकी बेर उपरा बोहोत आछे हैं । और तू बोहोत बेगि नाव ल्यायो । सो ऊपरा कहां मिले ? तब ब्रजबासीने वा ब्राह्मनी की दंडवत् करी। और कह्यो, जो- महाराज ! वह परचारगनी आप पार उतारी ही। सो वह पार झोंपरी छाय के बैठी है। घाट ऊपर बोहोत मनुष्य
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