पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१६

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एक वैष्णव क्षत्री. चंदनवाला वह आंखि मीडि मीडि के फिरि फिरि के देखन लाग्यो, जो - मोकों यह भ्रम तो नाही भयो? सो जहां लगि वाके मन में संदेह रह्यो, तहां लगि वाकों श्रीगुसांईजी श्रीनाथजी को दरसन दिये । तंव जान्यो, जो-सव वैष्णव कहत हते सो साँची वात है। तव वा वैष्णव ने वाही समै दंडवत् करी। तव ही वाके मन में विस्वास आयो। तब ही श्रीगुसांईजी उठि वेठे। पाछे श्रीगुसांईजी यह वैष्णव की ओर देखि के याकों पूछे, जो-वैण्णव ! तेरे मन को संदेह निवृत्त भयो ? तव तो यह वैष्णव दोरि के दंडवत् करि प्रभुन आगे विनती कियो, जो-राज ! आप की कृपा ते आप को स्वरूप अव जान्यो । तातें अव मेरे मन को संदेह निवृत्त भयो। भावप्रकाश-या वार्ता को अभिमाय यह है, जो-वैष्णव को श्रीगुसांईजी और श्रीगोवर्द्धननाथजी में भिन्न बुद्धि सर्वथा न करनी । सो गोपालदाम वल्लभाख्यान में गाये हैं. सो कारिका- रूप वेळ एक ते भिन्न थई विस्तर विविध लीला करे भजन सारं ।' सो श्रीगुसांईजी और श्रीगोवर्द्धननाथजी एक रूप हैं । परि स्वामी सेवक भाव प्रगट करनार्थ आप दोइ रूप धरि लीला करत हैं। तातें वैष्णव को श्रीगुसांईजी को स्वरूप अलौकिक करि जाननो । सो यह वैष्णव श्रीगुसांईजी कौ ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो। तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं, सो कहां तांई कहिए । वार्ता ॥८६॥ अथ श्रीगुग्यारेजी के सेयफ गोपालदाम भीत रिया, मांचोरा मानन, गुजरात के यासी, तिनकी माता को भाष फहत है- भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं। लीला में इन को नाम 'सहोदरी है। ये पहिले द्वारिका लीला में 'विमला' है, ताकी ससी ही । यो विमला ने प्रगटी हैं, नातें उन के भावस्य हैं। २