पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१८

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गोपालठाम भीतरिया, साँचोग ब्राह्मण ११ श्रीनाथजी प्रत्यच्छ वार्ता करें। ये समाचार श्रीगुसांईजी आछी भांति सब जाने, जो-गोपालदास ऊपर श्रीनाथजी की ऐसी कृपा भई है । ता पाछे गोपालदास सों श्रीगुसांईजी कव हू श्रीनाथजी की वार्ता पूछते । सो सर्व गोपालदास श्रीगुसांईजी आगे आछी भांति कहते । सो एक समै श्रीगुसांईजी श्रीनाथजीद्वार हते । तब एक दिन श्रीगुसांईजी आप भोजन करि अपनी बैठक में वीरा आरोगत हते । सो आधौ वीरा तो आरोगे हते, और आधी वीरा प्रभुन के हस्त में हतो। ता समे गोपालदास श्रीगुसां- ईजी की बैठक में धोवती सुकाइ कै आइ के दंडवत् करि के श्रीगुसांईजी सों विनती किये, जो- राज! मैं अपछरा कुंड तें धोवती धोइ कै आवत हतो, सो श्रीनाथजी पूंछरी की ओर विराजे हुते । सो मोकों देखि के श्रीनाथजी कहे, जो हम भूखे हैं । तासों सीतल भोग की सामग्री तहां मँगाई हैं। तव श्रीगुसांईजी वाही समै स्नान करि पर्वत ऊपर पधारि सामग्री सर्व सिद्ध करि परात में धरि ऊपर वस्त्र लपेटि के अपने कांधे पर धरि लेकै उरहाने पाइन पधारे । सो धर्मदास ग्वाल उक्त ते आवत हुतो। सो धर्मदास श्रीगुसांईजी कों मार्ग में मिल्यो । तव श्रीगुसांईजी सों धर्मदास ने पूछी, जो - महाराज ! तुम या समे उरहाने पगन कहां चले हो ? तब श्रीगुसांईजी ने धर्मदास सों कही. जो- हम इहां श्रीनाथजी वैठे सुने हैं । सो तुम हम को वताइ देहु । तब श्रीगुसांईजी कों धर्मदास ने मरोली (वरोली ?) को ढाक दूरि तें दिखाइ दियो । जो- वा ढाक के नीचे श्रीनाथजी विराजे हैं। तब