पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२१८

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राजा आसकरन, नरवरगढ के २०१ हृदय सों आनंद उमग्यो । तव यह धमार आसकरन ने गाई- राग : धनाधी या गोकुल के चौहटे रंगराची ग्वालि । मोहन खेलें फाग, नैन सलोनरी रंगराची ग्वालि०॥ नरनारीन आनंद भयो । रंग० । सांवल के अनुराग नैन० ॥१॥ दुंदुभी बाजे गहगहे । रंग० । नगर कोलाहल होई । नैन० उमडयो मानस घोखको । रंग । भवन रह्यो नहीं कोई ॥ नन० ॥२॥ डफ वांसुरी सुहावनी । रंग० । ताल मृदंग उपंग । नैन० झांझ झालरी किन्नरी । रंग० । आवज कर मुख चंग ।। नैन० ॥३॥ उतहि समाज गोपाल कौ । रंग० । बलजुत नंदकुमार । नैन० इत गोपी नवजोबना । रंग० । अंबुज लोचन चारु ।। नैन० ॥४॥ गारी देति सुहावनी । रंग० । प्रमुदित गोप कदंब । नैन० जुवती जूथ एकत्र भए । रंग० । गावति मदन विडंब ॥ नैन० ॥५॥ रतन खचित पिचकाईयां । रंग० । कर लिये गोकुलनाथ । नैन० तकि छिरके ता वृंद को । रंग० । जे राधा के साथ ॥ नैन० ॥६॥ केसु कुसुम निचोय के । रंग० । भरत परस्पर आनि । नैन० मृगमद चोवा कुमकुमा । रंग । चारु चतुर सम सानि ।। नैन ॥७॥ सुरंग गुलाल उडावही । रंग० । बूका वंदन धूरि । नैन० चढि विमान सुर देखही । रंग० । देहदसा गई भूलि ॥ नैन० ॥८॥ खेल मच्यो अति गहगहयो । रंग० । चितवत ब्रजवधू धाय । नैन० राधा रसिक सिरोमनि । रंग० । 'आसकरन' बलि जाय ॥ नैन० ॥९॥ या प्रकार धमार आसकरन ने गाई। पाछे खेल होइ चुक्यो। श्रीठाकुरजी ब्रजभक्तन सहित श्रीनंदरायजी के घर पधारे । तव आसकरन उहां देखे तो रमनरेती है । और कछु नाहीं । तव आसकरन व्याकुल होई के महावन दोरे गए । जो- मैं फेरि लीला देखू । सो उहां गाम के लोग सव आ मिले। तब सब लौकिक रीति देखि के विचारयो, जो - यह लीला मेरे मनोरथ सों कैसे देखोगो ? जब प्रभु अनुग्रह करेंगे तव दरसन होइगो।