पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२२२

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२०५ एक मोची, द्वारिका के मारग में एक गाम में रहतो यह सुनि के आसकरन ने कही, जो- कुंभनदास सों मिलनो। पाठे दूसरे दिन प्रातःकाल कुंभनदास मंगला के दरसन को आए। तव आसकरन ने जैश्रीकृष्ण किये। सो श्रीकृष्ण - स्मरन सुनत ही कुंभनदास के रोम रोम में आनंद भयो । नेत्रन में ते अश्रुन की धारा चली । सो आसकरन देखि कै चकित होइ रहे । कहे, भगवन्नाम सुनत जिन को इतनो प्रेम प्रगट भयो तिन को अनुभव में कहा कहनो ? पाजें आसकरन चतुर्मुजदास मिलि के कुंभनदास को संग दिन पांच करे । सो कुंभनदास के संग तें आसकरन को भगवद्भाव बोहोत बढ़यो। सो आस- करन हू वोहोत पद रहस्य लीला के किये । पाछे श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल पधारे तव आसकरन श्रीगोकुल आए। सो आसकरन श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपापात्र भगवदीय है। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए । वार्ता ॥ १२३ ।। भव श्रीगुसांईजी को सेवक एक मोची द्वारिका के मारग में एक गाम में रहती, ताकी धार्ता को भाव कहत हैं- भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं । लीला में उनको नाम 'ब्रह्मानंदिनी' है । ये 'शशीकला' ते प्रगटी हैं, तातें इनके भावरूप हैं। घार्ता प्रसग-१ एक समै श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल तें श्रीरनछोरजी के दरसन को श्रीद्वारिकाजी पधारे । तव मारग में यह मोची रहत हतो। ता गाम के वाहिर श्रीगुसांईजी आप के डेरा भए हते। सो श्रीगुसांईजी रसोई करि श्रीठाकुरजी को भोग समर्पि सम- यानुसार भोग सराइ आप भोजन करि आचमन करि वीरी आरोगि के गादी तकीया ऊपर विराजे हते। सब सेवक टहलुवा