पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२४३

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२२६ दोसौ घावन चैष्णवन की वार्ता नाहीं । तातें या देह को कहा भरोसो है। तासों आप विलंब न करिए । तव श्रीगुसांईजी उन मुरारी आचार्य की वोहोत ही आति जानि कै आपु कृपा करि कै उन तीनोंन को नाम निवेदन करवायो। पाठें उन को नाम श्रीगुसांईजी ने मुरारीदास धरयो । और सेवा के तांई श्रीनवनीतप्रियजी के प्रसादी वस्त्र पधराय दिये । पाछे घर आइ मुरारी आचार्य संग के मुखिया सों कहे, जो - हम तो श्रीवल्लभी सम्प्रदाय सिर धरि आए । पाछे संग के मुखिया को मुख यह मुरारीदास की वात सुनि कै स्याम होइ गयो। और वाने अपने परिकर सों कह्यो, जो - अव वह मेरे पास न आवन पावे । पाठे वाके परिकर के एक मनुष्य ने मुरारीदास को कही, जो - तुमने यह आछी वात न करी । जो इनकों अप्रसन्न करे । और अव इन कही है, जो - मुरारीदास अव मेरे पास तिलक-मुद्रा माला छोरि कै आवे तो आवन पावे । नांतर यह मेरे पास न आवन पावे । यह इन सों कहि कै वह मनुष्य तो चल्यो गयो। पाछे मुरारीदास वा दिन प्रसाद ले वोहोत मुद्रा धरि कै वा मनुष्य के पास गए। जिन कों वा मुखिया ने बरजे हुते, जो - मुरारीदास मेरे पास न आवन पावे तिन पास गए । सो सगरे मुरारीदास को तेज देखि कै विस्मित होइ गए। तातें वे मुरारीदास कों कछु बरजि न सके । सो ये जाँइ कै वा मुखिया सों आपुस में दोऊ संभाषन करयो । जो - अब मुरा- रीदास सों न जीतेंगे। पाछे मुखिया के मन में आई, जो - यह मार्ग तो उत्तम है तासों इन कौ सेवक हूजिये । सो बहुरि श्री- यमुनाजी में स्नान करि वह श्रीगुसांईजी कौ सेवक भयो । ता