पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता और वह क्षत्री वैष्णव श्रीगुसांईजी के पास आइ दंडवत् किये। तब श्रीगुसांईजी आप वा क्षत्री वैष्णव सों कहें, जो- अज हू तेरो अंतःकरन सुद्ध भयो नाहीं है । तव एक उपवास और करवायो । तव श्रीगिरिघरजी को आज्ञा किये, जो - अव इन को आत्मनिवेदन करवाओ। तव श्रीगिरिधरजीने श्री- आचार्यजी की पलंगडी के सन्निधान वा क्षत्री वैष्णव कों आत्मनिवेदन करायो । ताही समै श्रीगिरिधरजी कों और वा क्षत्री वैष्णव को पुष्टिमार्ग की लीला संबंधी व्रजभक्तन के संग श्रीठाकुरजी कौ दरसन भयो। सो ता दिन वह क्षत्री वैष्णव देहानुसंधान भूलि गयो । सो वैठक ही में परयो रह्यो। जो- महाप्रसाद लेवे की सुधि रही नाहीं। ऐसो रसाविष्ट भयो । ता पाठें उन के कान में श्रीगुसांईजी अष्टाक्षरमंत्र कहे । सो इतने ही में सावधानता भई । ता पाछे महाप्रसाद लियो । पाऊँ वा क्षत्री वैष्णव को अलौकिक ज्ञान भयो। सो सदैव भगवद्- रस में छक्यो रहतो। सो वह क्षत्री वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय भयो। तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं, सो कहां तांई कहिए। वार्ता ॥८॥ अब श्रीगुसांईजी को सेषक एक खंडन सनोढिया ब्राह्मन सिंहनद को बासी, तिनकी वार्ता को भाव कहत हैं भावप्रकाश-ये राजस भक्त हैं। लीला में इनको नाम 'कृसोदरी' है। ये 'गुनचूडा' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप हैं। सो ये सिंहनंद में सनाढ्य ब्राह्मन के जन्म्यो। सो यह बरस पांच को भयो । तव याकी माता मरी । पाछे पिता ने वाकों एक पंडित के उहां पढ़िवे कों