पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३०१

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२९८ टोमी बावन वणवन की बात ये गजनगर में एक बनिया के प्रगटी । मो बग्स नौ की भई । तब यात्र व्याह भयो । सो याको धनी निष्कंचन हतो । लकड़ी बेचि के निर्वाह करनो। पाछे ये पग्स माठ की भई तब वाकी धनी मग्यो । तब ये चग्ग्वा कांति के निर्वा करन लागी । सो याके घर के पास एक वैष्णव रहत हुनो । मोवाके यहां भगव वार्ता नित्य होई । सो या डोकरी ने विचाग्यो. जो या वणव के हहां बोहो लोग कथा सुनिवे आवत हैं । तातें में ह नित्य कथा मुनिवे को जाऊ नो आछो पाछे दूसरे दिन वा वैष्णव मो डोकरी पूछयो. जो - तुम्हारे यहां बोहोत लो भगवद्वार्ता कथा सुनिवे को आवत है । मो मोकों हु सुनिये की ईच्छा है । ता जो - तुम कहो तो हों हूँ तुम्हारे घर आयो कगें । नत्र या वष्णव ने कही, जो बाई ! हमारे घर कथा - वार्ता होत है । मो तो हमारे माग्ग की होत है । ता हमारे माग्ग को जो - कोऊ हॉर्ड मो सुनत है । तू यामें कहा मममेगी ? तब व डोकरी ने कायो, जो - तुम्हारो कौनसो माग्ग है ? तब वैष्णव कन्यो, जो हमारे वल्लभी मारग है । तब वा डोकरी ने वा वैष्णव सों विनती करी, जो - तुम कृप करि, मोकों वल्लमी करो। अब घर में अकेली बैठि रहति हुँ । तातें मेरो समय जान नाही । सो हों वल्लमी होऊ तो तुम्हारी कथा वार्ता नित्य सुनों । तातें तुम इतन कृपा मोपें करो तो भलो है। तब या वैष्णव ने कह्यो, जो - बाई ! हमारे गुरु श्री विठ्ठलनाथजी हैं । सो श्रीगोकुल में विराजत हैं। उन की सरनि जाडवे तें वल्लभ हॉई। सो तू उन की सरनि जाई तत्र वल्लभी वैष्णव तोसों भगवद्वार्ता-कथा कहें तब वा डोकरी ने कयो, जो - मैं श्रीगोकुल कैसे जाऊं ? मेरे पास तो द्रव्य हू नाह है । और सरीर ह थक्यो हैं । तातें तुमही मोकों वैष्णव करो तो आछो । तब व वैष्णव ने कायो, जो- श्रीगुसांईजी थोरे दिन में यहां पधारेंगे। तब तू उन की सरनि जइयो । तत्र वा डोकरी ने कही, जो - जब लों मेरे दिवस कैसें कटेंगे ? तातें तुम मोकों वैष्णव करो । तो मैं नित्य कथा सुनों । तब वा वैष्णव ने कही, जो - बाई तेरी आरति है तो तू नित्य कथा सुनिवे आइयो। परि हम तो तोकों वैष्णव करि सकत नाहीं । तब वा वाई ने कही, जो-भलो ! कथा सुनिवे आउंगी । पाठें जब श्रीगुसांईजी पधारे तव तुम मोसों कहियो । मैं वैष्णव होउंगी। पाछे वह डोकरी नित्य कथा सुनिवे वा चैष्णव के घर जाँई । सो याको भाव बोहोत बढ्यो । पार्ने श्रीगुसांईजी के दरसन की हु आरति बोहोत भई । कहे, जो - कब श्रीगुसांईजी पधारे और हों सेवक होउं, श्रीठाकुरजी की सेवा करों? ता पाछे केतेक दिन में श्री- गुसांईजी राजनगर पधारे । तव वा वैष्णव ने या डोकरी सों कही, जो - वाई श्री-