पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३१२

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एक नाऊ, गुजरात को श्रीगोवर्द्धननाथजी के चरनारविंद में प्राप्त भयो । भावप्रकास-या वार्ता को अभिप्राय यह है, जो-वैष्णव कों विश्वास- पूर्वक अष्टाक्षर मंत्र को जप करनो। तातें सर्व कार्य की सिद्धि होत हैं । अविश्वास बाधक हैं। सो श्रीआचार्यजी महाप्रभु 'विवेकधैर्याश्रय' ग्रंथ में लिखे हैं। सो श्लोक- अविश्वासो न कर्तव्यः सर्वथा बाधकस्तु सः'। तातें चैष्णव को अविश्वास सर्वथा न करनो । काहेतें, जो - यह आसुर धर्म है । तातें भक्ति में बाधक कह्यो है । सो वह विरक्त वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥ १४५॥ . अव श्रीगुसांईजीको सेधक एक नाऊ हुतो, सो वह गुजरात में रहतो, तिनकी धाको भाष कहत है- भावप्रकाश-ये तामस भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'अनन्या' है। ये तमचर के भावरूप हैं। सो ये निकुंज की सेवा करति हैं। भोर होत ही सब वृक्षन को सम्हारति हैं। सो एक समै आधी राति कों ये जगी। जाने, जो-भोर भयो। सो वृक्षन कों सम्हारन लागी। ताकी आहट भयो। सो श्रीठाकुरजी सुने । तब जाने जो सवेरो भयो, सो उठे। तब ललितादिक सखी ने कही, जो-अबही रात्रि बोहोत है । तब श्रीस्वामिनीनी क्रोध करि के अनन्या को साप दिए । कहे, जो- समै विना मन को खेद करायो । तातें जाऊ भूमि पर गिरो। सो यह गुजरात म एक नाऊ के जन्म्यो । पार्छ बरस पचोस को भयो। तव याके मा-बाप मरे। सो याको व्याह तो भयो नाही हतो । सो ये अपनो धंधो करि निर्वाह करत हुतो । घार्ता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी गुजरात कों पधारे हुते, सो श्री- रनछोरजी के दरसन को । सो वा मारग में एक नाऊ ने एक दिन श्रीगुसांईजी की सींक लीनी। सो बोहोत भली भांति सों