न श्रीगुमाईजी के सेवक एक पठान को बेटा, दिल्ही में रहतो, तिनकी भाव कहत हैं- विप्रकाश-ये राजस भक्त हैं, लीला में ये 'रासो' गोप है । सो ए के संग हथियार बांधि के चलतो। ये तमचर के भावरूप हैं। ो यह दिल्ही में एक पठान के जन्म्यो । सो बरस बोस को भयो । तब वैष्णव को सग भयो । तव चा वैष्णव ने उन सों कह्यो, जो - तू दैवी ऐसे मोकों जानि परत हैं। तातें तू वैष्णव होंइ कै अपनो जनम कृतास्थ च या पठान ने कही, जो-मैं कैसें मानों, जो-तुम साँच कहत हों। तब ने चाकों बालपने की सब बात कही। तत्र वा पठान ने जानी, जो - ये पुरुष है । तातें इन कौ कह्यो करनो । याही में मेरो भलो है। पाठे या पूछी, जो - वैष्णव कैसे हो ? तत्र वा चैष्णव ने कह्यो, जो- 'निगमबोध' श्रीगुसांईजी विराजत हैं। उन की पास जाइ नाम सुनि । तब तू इगो । तव वा पठान के बेटा ने दृढ़ निश्चै कियो, जो - श्रीगुसांईजी के उन कौ सेवक होनो। घातक प्रसंग-१ को एक समै श्रीगुसांईजी के पास वह पठान को बेटा नाम को आयो हुतो.। सो वाकों श्रीगुसांईजी ने नाम दियो। पठान को वेटा वैष्णव भयो। ता पाऊँ वा पठान को सेरसाह' पात्साह पास पुकारयो । कह्यो, जो - मेरो वेटा के धर्म में गयो है । तब पात्साह ने पठान के बेटा कों । तव पठान को वेटा आयो । तव पात्साहने पठान के में कह्यो, जो - तू यह धर्म छोरि दे। तव उन पठान के • पात्साह सों, कह्यो, जो - हों यह मार्ग क्यों छोरों ? ग में मैं प्रीति करी है। सो जासों प्रीत करिये तासों नाहीं। तव सेरसाह पात्साह ने माला-तिलक देखि यो, जो - ये वेप कहा है ? तव उन पठान के वेटाने कह्यो, ये वेष उन कों वोहोत प्यारो लागत है । तव पात्साह ने
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