३१२ दोगो बावन वैष्णन की वार्ता कह्यो, जो-तृ नहीं छोरेगो ? तब वा पठान के बंटा ने कह्यो, जो - हों सर्वथा नहीं छोरंगो। तव पात्साह ने कह्यो, जो हे रे कोऊ ? मेरी तरवारि ल्याओ। याकों मारों। तब मवन ने जान्यो, जो-अब यह पठान के वटा को मारेगो । तव उन पठान के वटा ने अपनी तरवारि निकारि पात्साह के हाथ में दीनी । तव पठान के वेटा सों पात्लाह ने कयो, जो-या मार्ग सों तें प्रीति करी है और में तोसों रिस करी है। अब देखें तेरी चौकी रक्षा कौन करे है ? तव पठान के बेटा ने पात्साह सों कह्यो, जो - तुम्हारे करनी होइ सो करिये । परि हमारे तो येही वात हैं। तव सेरसाह पात्साह ने वा पठान के बंटा की साँच देखि वोहोत प्रसन्न भयो । तर पात्साह ने वा पठान के वेटा को सिरोपाव देके अपने घर पठवायो । ता पाछे यह सव समाचार काहू वैष्णव ने श्रीगुसांईजी सों कहे । तव श्रीगुसांईजी श्रीमुख तें कहे, जो - वैष्णव को ऐसो ई धर्म है । जो - काहू सों कहिए नाहीं । गोप्य ही राखिए । वा पठान के बेटा ने अपनी देह को त्याग करनो आदरयो परि अपनो धर्म न छोरयो । सो वैष्णव को धर्म ऐसोई है । तातें वैष्णवन को दृढ़ आश्रय चहिए । और एक आश्रय श्रीगोव- ईननाथजी कौ होइ तो वे अपनी रक्षा-पालन क्यों न करें ? तातें जीव को विस्वास चहिए । सो 'निजेच्छात् करिष्यति' । श्री- प्रभुजी की ईच्छा होइगी सो कार्य होइगो। काहू वात की चिंता नहीं करनी । ऐसें श्रीगुसांईजी श्रीमुख ते आज्ञा दीनी । तव सब वैष्णव सुनि के बोहोत प्रसन्न भए । भावप्रकाश--या यह जताए, जो वैष्णव निर्भय व्है अपनो धर्म पालन
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