पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३१६

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स्त्री-पुरुप, आगरे के ३१३ करें ताकों प्रभु निश्च सहाइ होइ । सो वह पठान को बेटा श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय भयो । तातें इन की वार्ता कहां ताई कहिए । वार्ता ॥१४७॥ अव श्रीगुसांईजी के सेवक स्त्री-पुरुष, कनोजिया ब्राह्मन, आगरे में रहते, मिनकी वार्ता को भाव कहत हैं भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं । लीला में पुरुष 'मृदुभापिनी' हैं, और स्त्री 'कोमलांगी' । ये दोऊ श्रुतिरूपा के जूथ के हैं। सो एक सेठ की वार्ता में आगे कहि आए हैं। ये दोऊ 'कमला' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप हैं । वार्ता प्रसंग-१ सो वे देवी के अनन्य सेवक हते। सो देवी तिनसों सा- नुभाव रहती । सो एक दिन चाचा हरिवंसजी आगरे में आये। सो रात्रि प्रहर एक गई। ता समैं आगरे में आइ पहोंचे । तव चाचा हरिवंसजी ने मन में विचारयो, जो - अव या समै कोई वैष्णव के घर जाइंगे तो वह वैष्णव रसोई करायवे को आग्रह करेगो। भूखे न रहन देहिगो। तातें वैष्णव के घर काल्हि जाइंगे । अव तो रात्रि वोहोत गई है सो रसोई न होइ सकेगी। तातें जो वैष्णव के घर जाइंगे तो वह दुःख पावेगो। तातें वनें तो यह आछो चोंतरा है। आज इहांई सोय रहेंगे । सो वा चोतरा के पास कुआँ हतो । सो चाचाजी के संग वैष्णव चारि और हते । तिनसों चाचाजी कहे, जो - जल भरि लावो तो न्हाइ कै कछु महाप्रसाद लेहिं । तब वे दोइ वैष्णव तो खारी जल भरन गए । दोइ जनें श्रीयमुना जल लेन गए। सो जल ले आए । तव चाचा हरिवंसजी न्हाए । चारों वैष्णव हते सोऊ न्हाए । तव चाचाजी महाप्रसाद थो ४०