स्त्री-पुरुष, आगरे के ३२३ तो भलो कछ इन सों लियो तो न चहिए । भावप्रकाश-यह कहि यह जतायो, जो - श्रीगोकुलके मलाहन में हू.श्री- गुसांईजी की कृपा सों एसो भगवद्धर्म दृढ़ हैं। तातें श्रीगोकुल सगरो अलौकिक जाननो। यह सुनि के चाचाजी उन मलाहन के ऊपर वोहोत प्रसन्न भए । तव श्रीनवनीतप्रियजी को जो - महाप्रसाद पास हतो सो दियो । तव मलाहन कह्यो, जो-हां! हमें यह चाहिये । पाछे चारौ वैष्णव ब्राह्मन ब्राह्मनी सहित श्रीगुसांईजी के द्वार ऊपर जाँइ के द्वार को नमस्कार किये । तव विष्नुदास पोरिया ने कही भीतर ते, जो - या समै को यहां आयो है ? तव चाचाजी विष्नुदास सों भगवद् स्मरन किये । तब विष्नुदास तत्काल उठि कै किवार खोलि. के चाचाजी और सवन कों भगवद्स्मरन किये । तव विष्नुदास ने चाचाजी सों कह्यो, जो श्रीगुसांईजी की बैठक में जाँइ कै वैष्णव सहित विश्राम करो। तव चाचाजी सव वैष्णवन को लेकै श्रीगुसांईजी की बैठक कों नमस्कार किये । पाछे वैष्णव ब्राह्मन सहित सवन ने विश्राम किये । तव चाचाजी सव को समाधान करि कै आपहू विश्राम करे । सो ब्राह्मन-ब्राह्मनी के हृदय में ऐसो आनंद भयो । सो नींद नाहीं आई। पाठें जब घरी दोई रात्रि पाछिली रही बाकी तव चाचाजी उठे। ब्राह्मन-ब्राह्मनी को उठाये। चारों वैष्णवन कों उठाये । सो देह कृत्य करि कै न्हाय के सव वैठे। इतने में श्री- गुसांईजी उठि के बैठक में पधारे। तव चाचाजी दोऊ ब्राह्मन ब्राह्मनी कों दंडवत् कराये । चारों वैष्णव संग के हते सो दंड- वत् किये । तव श्रीगुसांईजी चाचाजी सों पूछे, जो-तुम तो आगरे गये.हते सो अव आये.? और इन ब्राह्मन-ब्राह्मनी कों
पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३२६
दिखावट