पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३३७

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३३६ दोगों वाचन वणरन की वार्ता ! राजद्वार में वोलियो। ऐसो कहियो । ता पाठे माहुकार के घर के पाछे वा वेस्या को ठाढ़ी करि के कहो, जो - तोको राज- द्वार के मनुष्य बुलावन को आवंगे। तब त वाके माथ चली आइयो। ता पाछे तोकों पृछे तब तोको सिम्बायो है तमो नाकों उत्तर दीजियो। यह कहि वह तुरक गजद्वार में गयो । तत्र पुकार यो । कह्यो, जो- साहिब ! एक माह अमृक की बह की मेरे संग मिलाप है। मो मेरे संग विटली है । मो अब हों मेरे देस चलिवे को कहत हों, तब वह कहत है, जो - हों तेरे मंग चलंगी । सो घनी लागू भई है। परि न जाने काल्हि कहा वात है ? स्त्री जाति को विश्वास नाहीं। तातें सिपाई भेज के वाकों बुलाइए। और वुलाइ के पूछिये । मोकों लिख्यो दरवार को करवाय देहु । और तुम अपने लागे को द्रव्य मो पास त लेहु । तव हाकिम ने कह्यो, जो-वे कहां है ? तव वा तुरक ने कह्यो, जो-वाके घर है । सो वाकों मनुष्य बुलायवे को पठवाइ देऊ। तव वह स्त्री आवेगी। तव वाकों पूछि के लिखो करि दीजिए। तव हाकिम ने वाकों बुलायवे को मनुष्य पठायो। तव वा तुरक ने मनुष्य सों कह्यो, जो - तुम अमूके साहकार के घर के पाछे वह वाकी वहू ठाढ़ी है सो बुलाय ल्याउ । तव वह मनुष्य बु- लावन को गयो । तव वह उहां ठाढ़ी ही । सो वासों मनुष्य- ने कह्यो, जो-तोकों राजद्वार बुलाई है। तव राजद्वार में आई के वह ठाढ़ी भई । तव हाकिम ने पूछ्यो । जो - तू याके संग जायवे में राजी है ? तव वा स्त्रीने कह्यो, जो - हों याके संग जाइवे में राजी हूं | मेरे आजु वरस दोय कौ संग है । सो हों विटल गई हों । सो हों याके संग जाउंगी। तव हाकिमने नवीं-