एक श्रोता-वक्ता, अमारवा के ३५७ पाठें एक दिन ग्वारिया गाँइ चरावन आवते सो उन ने कही, जो-ये दोऊ महापुरुष हैं। देखो, इन को चालीस दिना भए। कछु अन्न जल लीनो नाहीं । तातें इन को कछु दूध देइ तो आछो । पाठे इन ग्वारियान ने अपने लोटा में गऊ दुहि के दूध सों लोटा भरि कै उन के आगे धरयो। तव उन वैष्णवन कही, जो - भगवद् इच्छा तें आय प्राप्त भयो है । तव उन वै- ष्णवन ने भोग धरि कै वह प्रसादी दूध लियो । पाऊँ भगवद्- वार्ता करन लागे। सो ऐसें ग्वारिया नित्य दूध दे जाय । सो उतनो दूध लेनो। और वैठे भगवद्वार्ता करनी। सो ऐसें करत छह महिना व्यतीत भए । ता पाळें एक दिन उन दोऊ वैष्ण- वन की भगवद्वाती करत देह छुटि गई। दोऊ भगवल्लीला में प्राप्त भए । पार्छ उनकी देह को जीव-जंतु भक्षण करि गए । और उन के अस्थी उहां परे रहे। पाछे उन दोऊन की स्त्री श्री- गोकुल में हती । सो दोऊ जनीं उनको ढूंढत ढूंढत वाही ठौर जाँई निकली। सो देखे तो उहां उन ग्वारियान गाँइ चरावत हते । तब इन वैष्णव वाईन ने वा ग्वारियान ते पूछी, जो यहां कोई दोइ वैष्णव देखे ? तव उन कही, जो - हां हां ! दोई वैष्णव इहां वैठे हते । सो हमने छह महिना तांइ देखे । पाठे उन दोऊ जनेंन की देह छुटि गई । ऐसें ग्वारियान ने कही। तव उन वैष्णवन को स्त्री ने पूछी, जो-वे कहां बैठे हते? तब उन ग्वारियान ने वह स्थल वतायो । सो उहां देखे तो अस्थी परी हैं । तव उन स्त्रीन ने कही. जो - अब कैसे खबरि परे ? तव वा श्रोता की स्त्री ने कही. जो मैं तो अपने पति की अस्थी पहचानि लेउंगी। तब उन वक्ता की स्त्रीने कही. जो - कैसे
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