पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३५९

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दीमा बारन वैष्णवन की वार्ता पहचानेगी ? तव श्रोता की स्त्री ने कही, जो - मेरे पति तो श्रोता है । सो भगवद्वार्ता मुनि के उनकी अस्थी में छेट पर हैं । पाठे श्रोता की स्त्री ने छेद वार अस्थी मब वीनि लीन । और वक्ता की स्त्री ने विना छेद के लीन । पाठे उन दोऊन कौ अग्नि-संस्कार कीनो। पाठे वे दोऊ बी श्रीगोकुल में आय रही। और वे दोऊ वैष्णव नित्य लीला में जाँड प्राप्त भए । भावप्रकाश-या वार्ता को अभिप्राय यह है, जो वणन को मगरवार्ता या प्रकार कहनी मुननी । काहे ने, जो भगवदयार्ता म्बम्पान्मा है। नातं उनकी प्रीति पूर्वक हृदय में धारन किये ते देह के अभ्यास मब हटि जात है। गो भगवद्वार्ता ऐसो पदार्थ है। सो वे श्रोता और वक्ता दोऊ श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा- पात्र भगवदीय हे । तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं, सो कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥ १२॥ अव श्रीगुसांईजी के सेवक एफ कायम्य आगरे को, मरत पं. सया पान दीवानगीरी करतो, तिनको धार्ता को भाय फहत हैं. भावप्रकाश-ये राजम भक्त हैं । लीला में इनका नाम 'दर्शनातुरी' है। ये बड़े उपनंदकी बेटी हैं । सो यह श्रीठाकुरजी के स्वरूप में आमक्त हैं । तातें यह 'दर्शनातुरी' श्रीयसोदाजी के घर वार वार श्रीठाकुरजी के टरमन को आवति हैं। सो श्रीयसोदाजी वाकों वरजति हैं । कहति हैं, जो - तु मेरे मंदिर में मति आवें । तृ पावरी भई है । तातें मेरे लाला को दीठ लगेगी। या प्रकार श्रीयमो- दाजी ' दर्शनातुरी' को श्रीठाकुरजी के दरमन करावति नाही । ये 'ईश्वरी' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप हैं । घार्ता प्रसंग-१ सो वह कायस्थ सूरत के सूवा के पास दीवानगीरी करतो। सो एक समै वह कायस्थ राजनगर कछू कार्यार्थ आयो। सोता समै श्रीगुसांईजी राजनगर में विराजत हुते। तब इन कायस्थ