पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३६३

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३६२ दोमा पारन वणरन की वार्ता तान लाग्यो। भावप्रकाग--या यह जताए, जो - गुरु आग गांची में तो कार्य हो । सो वह कायस्थ श्रीगुसांईजी को ऐमो कृपापात्र हनी। तातें इन की वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥१३॥ अव श्रीगुमाईजी के सेयक पफ ग्रजयामो, पफ मांगी-यनिमा, समान तिनकी पार्ता की भाय कात भावप्रकाग-ये तामम भक्त हैं । लीला में ब्रजवामी नो गहित' गोप है। और मोचो-बनिया 'कालिका' हैं। और कालिका की एक महनरी तिन को नाम 'संमया' है । मो 'संसया' यहां बालन को प्रागट्य जाननो । ये 'मुगंधिनी' तें प्रगटी है, तातें इन के भावरूप हैं। घा प्रमग-2 सो एक समै श्रीगुसांईजी श्रीद्वारिकाजी कों पधारे । सो ब्रजवासी आप के संग हते । सो एक गाम में डेरा भए । सो वा गाम मे एक वनिया जोड़ा वचतो। सोवासों मोची कहते। सोवा मोची-बनिया कों देवी को वरदान हतो । सो वह जासों कहे, जो-मरिजा, सोमरि जातो। देवी वा मोची सों वोलतो। सो वा मोची-वनिया की दुकान पै एक व्रजवासी जोड़ा पहरिव गयो । सो वा मोची ने ब्रजवासी सों मोल ठहराय के जोड़ा पहराय दियो। इतने में पांच-सात ग्राहक आय गए। सो उन कों जोड़ी दिखायवे लाग्यो । और वा ब्रजवासी ने कही, जो - तेरे दाम ले। परि वह तो लेऊ लेऊ करे और लेई नाहीं। औरन कों जोड़ी पहिरावें । सो दोइ चारि वार वा ब्रजवासी ने कही, जो - दाम ले । परि वह तो सुने नाहीं । तव वा ब्रज- बासी को रिस चढ़ी । सो जोड़ा सहित वा मोची कों लात मारी । तव वाने कही, जो - मरि, मरि, परि कछु न भयो।