३७० दोमो बारन वैष्णवन की वार्ता करि के वैष्णवन को महाप्रसाद लिवाया। पाठे आप महा- प्रसाद लियो। पाछे वह वैष्णव चलन लागे। तब वह बनिया- वैष्णव उन को विदा करि के नेक दुरि लों पहोंचावन गयो । पानां प्रमग-२ । और इनके पारोस में स्त्री-पुरुष ब्राह्मन रहते । मो वे देवी के पूजारी हते । सो वा ब्राह्मन की स्त्री ने इन बनिया-वैष्णव की स्त्री ते पृछी, जो - तुम्हारे घर उपरा लकरी तो सब भीज गए हते और तुमने रात्रि रसोई तो वगि करी। मोलकरी कहां ते ल्याए ? तव वा वैष्णव की स्त्रीने कही. जो-मेरा धनी जाँइ के देवी के एक किवार तोरि के ले आयो। नव उन कही. जो- देवी तो जागती ज्योति है । सो तुम तें कछ न बोली ? तव इन कही, जो-हम तं तो न वोली। सो वह ब्राह्मन को नित्य दोऊ बेर ताती रसोई भाँवती । ठंडी न लेतो । सो यह वेष्णव न्हाय के सेवा में गए तव सांझ परी । तव वा ब्राह्मन ने आय के अपनी स्त्री तें कही, जो- तुम सूकी लकरी ले आवोगे तो हों रसोई करोंगी। तब उन ब्राह्मन ने कही, जो-अव तो रात्रि परी, या समय लकरी कहां तें ले आउं ? तब इन स्त्रीने कही, जो - काल्हि यह वेष्णव जाँइ कै देवी को एक किवार तोरि के ले आयो है और एक है सो तुम ले आवो । तो रसोई होंई। तब उन ब्राह्मन कही. जो- देवी रूठेगी। तव उन स्त्रीने कही, जो-देवी तो गरीव है। वह तो कछु बोलेगी नाहीं। अपने पै तो त्रुठमान् है । तातें तुम जाँइ कै बेगि ले आवो। पाछे वह ब्राह्मन कुल्हारी ले के गयो । सो जाँइ कै देवी के किवार में एक घाव कुल्हारी को
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