पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३७२

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एक बनिया, एक ब्राह्मन, जानें देवी के किवाड़ उतारि लिये ३७१ कियो । तहां कुल्हारी वाही किवार में चिपक गई। और वा ब्राह्मन के हाथ वा कुल्हारी ते विपकि रहे । सो वोहोत बल करे उपाइ करे । परि छटे नाहीं। तब वह अपने मन में धिक्कार करन लाग्यो। और कही, जो- मैंने स्त्री की कही करी तातें देवी मोपै रूठी। ऐसें करत पहर रात्रि गैई। तब वा स्त्रीने कही, जो - ब्राह्मन कव को गयो सो आयो नाहीं। तातें मैं जाँइ कै खवरि तो काढों ? सो वह ब्राह्मनी आय कै देखे तो ब्राह्मन परयो है। तव वा स्त्री ने कही. जो-लकरी फारत तुम को नींद आइ गई कहा ? तव वा ब्राह्मन ने कही, जो-रांड ! मेरो करम फूटयो है, जो तेरी कही मानी। तातें देवी मोपै रूठी। मेरे तो हाथ चिपके हैं । तव वा ब्राह्मनी ने कही, जो - मैं छुडाउं । ऐसें कहि कै वह छुराइवे लगो। सो वाहू के हाथ चिपकि गए। तव दोऊ बोहोतेरो वल करे, परि छुटे नाहीं । तव देवी तें दोऊ विनती करन लागे। तब देवी वोली, जो-ले जा! मेरो किवार लेवे आयो है ? सो अव तो तेरे हाथ न छूटेंगे । तव इन ब्राह्मन कही, जो-न छूटेंगे तो भूखे मरि जाइंगे। तो तोकों हत्या लगेगी। तब देवी ने कही, जो-तू मेरे किवार नए करि देउ । और वा वैष्णव के घर दोइ भारा लकरी नित्य ल्यायो करि । तव वा ब्राह्मन ने कही, जो-ऐसे ही करेंगे। परि मैयाजी! हमारे हाथ काहू तरह छुटे। तब देवीने कही, जो-हाथ तो तवही छूटेंगे जब हों तुम्हारी आछी भांति फजीती करोंगी। काहतें? जो-फेरि कोऊ ऐसें न करे। ऐसे करत सवेरो भयो । तव सव गाम के मनुष्य आये। राजा आयो। सब लोग हँसन लागे और कहन लागे, जो- देवी के "