पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३७९

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३७८ दोमो वारन बेग्णन की वार्ता अघ श्रीगुमाई जी । मेयर प्रेमजी लाणा, हालारको वामी, गिनी गा को भाष कहन- भावप्रकाश-ये गजस भक्त है। लीला में उनकी भाव 'प्रेम-प्रकाशिका' है । ये 'मुंदरी' ते प्रगटी है, तात उन के भावरूप है । tai ga- i सो एक सम हालार को संग श्रीगोकुल को आयो । नाम वह प्रेमजी हु आयो । सो श्रीगुसांईजी के दरसन किये । पाठे प्रमजी ने श्रीगुसांईजी मों विनती कीनी. जो- महाराज ! कृपा करि कै सरनि लीजें । तब श्रीगुसांईजी ने कृपा करि के नाम सुनायो । पाछे दूसरे दिन व्रत करवाय के ब्रह्मसंबंध करवायो । ता पाछे संग तो श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरमन को चल्यो । तब प्रेमजी ह श्रीगुसांईजी सों आज्ञा मांगि के गयो। ना पाऊँ श्री- गोवर्द्धननाथजी के दरसन किये । फेरि संग श्रीगोकुल आयो। तव दस-पांच दिना रहि कै संग तो ब्रजयात्रा करिव को चल्यो। तव प्रेमजी हू श्रीगुसांईजी की आज्ञा मांगि के ता संग के साथ बजयात्रा को गयो । सो केतक दिन में संपूरन ब्रजयात्रा करि के श्रीगोकुल आयो। पाठे श्रीगुसांईजी के दरमन किये । तव श्रीगुसांईजी ने पूछी, जो-प्रेमजी ! ब्रजयात्रा करि आयो? तब प्रेमजी ने कही, जो - महाराज ! आप की कृपा तें ब्रजयात्रा करी। पाछे प्रेमजी ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो - महा- राज ! अव कहा आज्ञा है ? तव श्रीगुसांईजी प्रेमजी सों आज्ञा किये, जो-भगवत्सेवा करो। तव प्रेमजी ने विनती करी, जो महाराज! सेवा सूक्ष्म होइ तो करों। तव श्रीगुसांईजी वस्त्र-सेवा पधराय दीनी । और आज्ञा किये, जो-यही सूक्ष्म है और यही असाधारन हे । जो सिंगार करो तो सिंगार करो। न वनें तो वस्त्र