पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३९७

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३९८ टोगो पारन वैष्णवन की वार्ता जानत हैं। प्रार्थना काहकों करिण? प्रार्थना की तो प्रथमही मिद्ध करि के राखे हैं । और मनुष्य अपने मन की ह नाहीं जानत, जो-कहा है ? और अपने अद्रष्ट ह जानत नाही. जो-अदृष्ट में कहा लिख्यो है ? तो श्रीप्रभुजी के धर्म कम जानिए ? नातं सर्वथा करि के काह वात की प्रार्थना नहीं करनी। श्रीगोवर्द्धन- नाथजी ने विचारयो होड़गी मोई होड़गी। मो मव भलो करेंगे। ता पाछे वा विरक्त वैष्णव सों कन्यो, जो - जीवको अभिमान सर्वथा नहीं करनो। और ऐसो नहीं विचारनोजो होतो ऐसीरीनि सों सेवा करत हों और प्रभुजी तो हमारी ईच्छा तें कार्य कर नाहीं हैं। आपकी इच्छा प्रमान कार्य करते हैं। मोमो मेरे मरीर की सेवा को कष्ट है । मैं कहा करों ? में नो अव वेट्यो रहांगो। ऐसो जीव जो विचार करि के परयो रहे, तब वा जीव की कार्य सिद्ध कहांतें होई ? सो एसो नहीं करनो। मो वैष्णव कों गुरु की आज्ञा प्रमान चलनो। गुरु की आज्ञा लोप नहीं करनी। आज्ञा कौ उल्लंघन करे तो बड़ा अपराध है। तातें सेवक कों तो सदा स्वामी के आधीन रहनो । जव सेवक निवेदन करयो है, पुत्र, दारा, गृह धनादिक सब समर्पन करयो है, तव अव या जीव को कहा है ? सो अभिमान करत हे ? तातें प्रभुजी जो करेंगे सो आछी ही करेंगे। ऐसो निश्चय राखनो । और दूसरो, हौं सेवक हों तातें सवा ही करनी मेरो धर्म है । तामें तीनों प्रकार के दुःख को सहन करे । ऐसौ विवेक, धैर्य जिन को आयो होइ ताको प्रार्थना सर्वथा नाहीं करनी । और कोई कहे, जो - श्रीमुख देखिवे की प्रार्थना नहीं करनी ? तहां कहत हैं, जो - ये तो भगवदीयन की मुख्य धर्म है। जो-