पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- झ - यहां से पिछले वर्ष प्रकाशित हो चुका है। चतुर्वेदी जी के द्वारा संकलित शर्मा जी के पत्र प्रायः बहुत बाद के हैं। यद्यपि इनका भी साहित्यिक महत्व किसी कदर कम नहीं है, तथापि द्विवेदी युग की आरंभिक स्थिति का संकेत इन पत्रों से नहीं मिलता। ये पत्र उस समय के है, जब छायावाद-युग केवल आरंभ ही नहीं हुआ था, अपितु वह परिपक्व हो चुका था। पं० पद्मसिंह शर्मा के अनेक पत्र इससे बहुत पहले के भी उपलब्ध हैं। ये पत्र सन् १९०५ ई० से १९१३ तक के हैं। ये सभी पत्र नागरी प्रचारिणी सभा के पास है, जहां से उनकी प्रतिलिपि इन पंक्तियों के लेखक ने ली है। इनके साथ ही आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्रीधर पाठक, के भी अनेक पत्रों का संग्रह मैंने किया है। साहित्याचार्य पं० पद्मसिंह शर्मा अपने काल के महान् पंडित, भावुक आलोचक तथा स्वाभिमानी व्यक्ति थे। उनके इस व्यक्तित्व की झलक उनके प्रत्येक पत्र में दिखाई पड़ेगी। संस्कृत, हिंदी, फारसी तथा उर्दू के निष्णात् पंडित तथा ब्रजभाषा साहित्य के अपूर्व पारखी थे। बिहारी की सतसई पर उन्होंने जिस संजी- वनी भाष्य की रचना की है, वह अधूरा होने पर भी शर्मा जी की कीर्ति का ज्वलन्त प्रतीक है । इस रचना में शर्मा जी ने संस्कृत, फारसी तथा उर्दू काव्यों की समानान्तर सूक्तियों का प्रचुर प्रयोग कर बिहारी के दोहों के साथ उनकी तुलना की है। यह दूसरी बात है कि आज के आलोचक को शर्मा जी की आलोचन-पद्धति केवल 'वल्लाह या 'मुकर्ररे शाद' वाली मालूम हो तथा उसमें साहित्यालोचन की वैज्ञानिक दृष्टि का अभाव खटके, किन्तु इतना होते हुए भी वह इससे इन्कार नहीं करेगा कि शर्मा जी ने बिहारी के कलात्मक सौंदर्य को किसी सीमा तक पहचानने की कोशिश अवश्य की थी तथा वे एक भावुक सहृदय भी थे, कोरे अलंकारी पंडित नहीं। शर्मा जी के पांडित्य के विषय में दो मत नहीं हो सकते । स्वयं उनके गुरु पं० काशीनाथ जी तथा गुरुभाई पं० भीमसेन जी शास्त्री तक उनके पांडित्य के कायल थे। जहां तक फारसी साहित्य में उनके दखल का प्रश्न है, हाली तथा अकबर जैसे उर्दू के नामीगरामी शायर तक उनसे अपने नज्म' की दाद पाने में फख्र समझते थे। अकबर ने पं० पद्मसिंह शर्मा के पांडित्य एवं योग्यता की प्रशंसा करते हुए लिखा था-"आपकी काबलियत और सुखनफ़हमी ने मुझको आपका आशक बना दिया है। मेरे लिये दुआ फरमाया कीजिये। अब बजुज यादे खुदा और जिक्र आखरित के कुछ जी नहीं चाहता; लेकिन इसी रंग के सच्चे साथी नहीं मिलते। आप बहुत दूर है।" (महाकवि अकबर का पत्र पं० पद्मसिंह शर्मा के नाम, चतुर्वेदी जी के द्वारा “पद्मसिंह शर्मा के पत्र" की भूमिका में पृ० ३८ पर उद्धृत)। द्विवेदी युग के प्रायः सभी लेखक तथा समालोचक नवोदित छायावाद के