पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/९

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लिए स्वाभाविक और बनावटी पत्रों में भेद करना कोई मुश्किल बात नहीं है। इसके सिवा बने हुए पत्र कागजी नाव की तरह है, जो चल नहीं सकते। काठ की हांड़ी की तरह केवल एक बार आप उनसे काम ले सकते हैं। अच्छा पत्र-लेखक बनना अत्यन्त कठिन है। अन्य क्षेत्रों में तो आपको थोड़े से आदमियों का मुकाबला करना पड़ता है, पर यह क्षेत्र तो ऐसा है, जिसमें दुनिया आपकी प्रतिद्वन्द्विता के लिये खड़ी है, क्योंकि चिट्ठियां तो लाखों करोड़ों ही आदमी नित्यप्रति लिखा करते हैं।" इस दृष्टिकोण से नगण्य से नगण्य, अदने से अदने आदमी के पत्र भी, यदि वे उपर्युक्त गुणों से संपन्न है, पत्र-लेखन-कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। किंतु हम यह नहीं मानते कि जो व्यक्ति “बजात खुद अच्छा नहीं है, वह अच्छा पत्र-लेखक हरगिज़ नहीं बन सकता।" राजनीतिज्ञों, कूटनीतिज्ञों, साहित्य जगत् के कूटनीतिज्ञों और 'दुहरे व्यक्तित्व के लोग आमतौर से अच्छे नहीं होते, पर अच्छे पत्र-लेखक होते हैं। किन्हीं महान् साहित्यिकों, युगविधायक महापुरुषों, दक्ष राजनीतिज्ञों तथा गंभीर दार्शनिकों के पत्रों का दुहरा महत्व भी होता है, वे एक ओर पत्र-लेखन- कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, दूसरी ओर साहित्यिक प्रगति ऐतिहासिक या राजनीतिक गतिविधि तथा दार्शनिक विचाधार का पूरा परिचय देते हैं। कीट्स, शेली, बायरन या जान्सन के पत्र अंगरेजी साहित्य की अपूर्व निधि है, तो नेपोलियन, मार्क्स, एंजेल्स या लेनिन के पत्र यूरोपीय इतिहास की गतिविधि के परिचायक हैं। कतिपय साहित्यिक उत्कृष्ट कोटि के पत्र-लेखक होते हैं। कवीन्द्र रवीन्द्र, तौल्स्तौय, रोमो रोलौ तथा स्टीफेन स्विग उच्चकोटि के पत्र- लेखक थे। उन्होंने कई पत्रों में अनेकों व्यक्तियों के जीवन की धाराओं को बदल दिया है। हिंदी के भी कई साहित्यिक पत्र-लेखन-कला में कुशल रहे हैं। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, साहित्याचार्य पं० पद्मसिंह शर्मा, श्रीधर पाठक आदि के कई पत्र साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इधर कुछ ही दिनों से हिंदी के साहित्यिकों का ध्यान इन साहित्यिक विभूतियों के पत्रों की ओर जाने लगा है। श्री राय कृष्ण- दास, मुरारीलाल केडिया,पं० बनारसीदास चतुर्वेदी, श्री रामेश्वर गुरू (जबलपुर), श्री लल्ली प्रसाद पांडेय (प्रयाग) आदि व्यक्तियों ने तथा नागरी प्रचारिणी सभा काशी और हिंदी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग) आदि संस्थाओं ने द्विवेदी जी तथा पं० पद्म सिंह शर्मा आदि के पत्रों को सहेज कर रखा है। द्विवेदी जी के द्वारा कई साहित्यिकों तथा अन्य संपर्क में आने वाले लोगों को लिखे गए पत्रों का एक संग्रह इन्हीं पंक्तियों के लेखक के द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है, जो भारतीय ज्ञानपीठ, काशी से छपा है। पं० बनारसीदास जी चतुर्वेदी तथा श्री हरिशंकर जी शर्मा के संपादकत्व में पं० पद्मसिंह शर्मा के पत्रों का भी एक संकलन आत्माराम ऐंड संस के