पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/११७

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१०२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र .. अद्भुत इन्द्रजाल को पढ़कर हम चकित हो गये। यह हमने पढ़ा तो पहले था। शायद किसी उर्दू अखबार में था। पर विश्वास न आता था। अब सरस्वती में पढ़कर विश्वास करने को जी चाहने लगा। क्या ऐसी घटना सम्भव हो सकती है ? बहुत अच्छा, अभी कुछ दिन चुप रहिए। विद्यालय को न छेड़िए। आपकी रीडर्स के दुरुपयोग का मौका मैं किसी को नहीं दूंगा। मैंने उन्हें अपने एक मित्र की मार्फत बिजनौर के पते से मंगाया था। वे उन्हें देखना चाहते थे। मालम नहीं आ अभी आई या नहीं। कृपापात्र- पद्मसिंह ओम् नायकनगला पो० चान्दपुर जिला-बिजनौर ११-४-०६ श्रीयुत् मान्यवर महोदयेषु सादरं प्रणामाः ___एक मास के करीब हुआ श्रीमान् का कृपापत्र मुझे मिला था। उत्तर में जो अति बिलम्ब हुआ उसके कई कारण हुए। एक तो यह है कि मैं गुरुकुल कांगड़ी के उत्सव पर चला गया था। वहां कुछ दिन लगे (वहां पं० सत्यव्रतसामश्रमी के दर्शन करके चित्त बड़ा सन्तुष्ट हुआ, वास्तव में वहं वेदविद्या के अपूर्व और अद्वितीय पण्डित हैं। बड़े साधुस्वभाव और मिलनसार हैं। फिर कुछ तबीयत गड़बड़ रही। इसके अतिरिक्त मार्च की सरस्वती ने बहुत इन्तजार दिलाया। सोचा था कि उसे पढ़कर पत्र लिखेंगे, पर वह अबतक न मिली। डाक वालों की करतूत से ऐसा हुआ, कल थोड़ी देर के लिए एक मित्र के पास वह पढ़ने को मिली। थोड़ा थोड़ा सब जगह से पढ़ा। 'जम्बुकी न्याय' पढ़कर चित्त खूब प्रसन्न हुआ। 'दिवाभी तभी नामाकूल- 'खूब हुआ जी खूब हुआ, कह बुड्ढे का कदम छुआ' ने खूब हँसाया। पर इस कविता के पात्रों को स्पष्ट रूप से हमने समझा नहीं। ये जम्बुकराज और न्यायप्रार्थी कौन कौन हैं। गत नवंबर में मैं जब लाहौर गया था तो 'आबेहयात' के मुसनिफ मुहम्मद हुसैन आजाद से मैने मिलने की कोशिश की। परन्तु मालूम हुआ कि बेचारे एक