पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२

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हुए शर्मा जी ने लिखा है-"मुझे आपका समालोचना प्रकार बड़ा रुचता है। ....आपकी समालोचन शैली तो अपूर्व ही है।" आचार्य द्विवेदी का साहित्यिक व्यक्तित्व मुख्य रूप में कवि का न था, यद्यपि उन्होंने संस्कृत और हिंदी में कतिपय कविताएं भी लिखी हैं। एक पत्र में द्विवेदी जी के काव्य कौशल की दाद देते हुए शर्मा जी लिखते हैं- ___ "पंडित जी आप मुझे व्यर्थ में अतिशयोक्ति करने का उपालंभ देते हैं। सच जानिए मैंने आपके या आपकी कविता विषय में कोई अत्युक्ति नहीं की है। किन्तु जैसा अन्तःकरण ने लिखाया है, वैसा अविकल, लिख भर दिया है। चाहे मुझे अतिशयोक्ति का इलजाम फिर सुनना पड़े, परन्तु मैं 'काव्यमंजूषा' को देख कर यह कहे बिना कदापि नहीं रह सकता कि आप संस्कृत के भी अद्भुत कवि है, जैसे जचे तुले, सीधे सादे भावगर्भित और सरल शब्दों द्वारा अपने भाव अभिव्यक्त करने की शक्ति आप में है वह अन्य आधुनिक कविंमन्यों में नहीं देखी जाती।" (जुलाई १९, सन् १९०५ के पत्र से उद्धृत)। द्विवेदी जी को पं० पद्मसिंह शर्मा किस आदर की दृष्टि से देखते हैं यह तो उनके प्रत्येक पत्र की संबोधन-शैली से ही स्पष्ट है। पत्र के कलेवर में भी यह प्रत्येक वाक्य से प्रकट होती दिखाई पड़ती है। एक पत्र में शर्मा जी ने आचार्य द्विवेदी जी -से हिंदी के व्याकरण की मांग पेश करते हुए लिखा है:- "व्याकरण बनाने के लिए जिन बातों की आवश्यकता है, वे सब आप में है। सामग्री और अवकांश की कमी अलबत्ता हो सकती है। यह ठीक है कि आप से बहुत से कामों के लिए प्रार्थना की जाती है, और निःसंदेह आप कर भी बहुत कुछ रहे हैं। परन्तु फिर भी आपके सिवा कहें किससे? अभागे हिंदी साहित्य को तो केवल आप ही का सहारा है और बस। भाषा और व्याकरण विषयक प्रबंध को अवश्य लिखिए। हमें आशा है कि वह हिंदी व्याकरण की भूमिका होगी। और जब भूमिका बन गई तब व्याकरण भी किसी न किसी दिन बन ही जायगी। परमात्मा से प्रार्थना है कि इस काम में आपको पूरी सफलता प्राप्त हो।" (आचार्य द्विवेदी जी को लिखे १०-९-०५ के पत्र से)। शर्मा जी के कई पत्रों में भाषा विषयक शुद्धता-अशुद्धता पर भी संकेत मिलता है। एक स्थान पर 'जब' के साथ 'तो' के प्रयोग को शुद्ध बताते हुए वे लिखते हैं- ___ "आपका मत है कि जब के साथ "तब" का प्रयोग होना चाहिए "तो" का नहीं। परन्तु उर्दू के प्रसिद्ध कवि गालिब ने इसका प्रयोग इस प्रकार किया है- "यह कह सकते हो हम दिल में नहीं है ? पर यह बतलाओ। कि जब दिल में तुम्ही तुम हो तो आंखों से निहा क्यों हो?