पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२२

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १०७ 'हमारा अधःपतन' वाली कविता बड़ी ही मर्मस्पृक है। हमने इसे कई बार 'पढ़ा, हाल में हमें एक बरात में जाने का इत्तफाक हुआ, 'सरस्वती' साथ थी, वहां उसे हमने मित्र मण्डली में पढ़ा। कविता इतनी पसंद आई कि उपस्थित श्रोताओं में से दो सज्जनों ने 'सरस्वती' का ग्राहक बनना स्वीकार किया। भला यह छंद कौन है ? हमने तो इसे 'नसीम' की 'गुलबकावली' के बहर पर पढ़ा। हिंदी कविता में इस छंद का यह नया प्रयोग है, पर है अच्छा । क्या यह नाथू राम शंकर 'वही हैं जिनके 'शंकर सरोज' की समालोचना कुछ दिन हुए 'सरस्वती' में छपी थी? आप कवि जी के पास हमारा यह तुच्छ साधुवाद पहुंचा दीजिए, और उनसे कहिए कि वह अवश्य 'सरस्वती' के लिये इस प्रकार की कविता लिखा करें, गिरी हुई आर्य जाति को विस्मृतप्राय पूर्व गौरव याद दिलाकर उभारने की चेष्टा करना बड़े पुण्य का काम है। 'हिंदी ग्रंथमाला' का इन्तजार है, अभी आई नहीं, लिखा तो है, क्या “शिक्षा' का अनुवाद प्रारंभ कर दिया ? अनुवाद यदि उस ढंग पर किया जाता, जैसा उर्दू वाले ने किया है, तो बहुत अच्छा होता। क्या शिक्षा के संस्कृत अनुवाद का कहीं से कुछ पता चला? कृपाभिलाषी पद्मसिंह पहले एक पत्र में मैंने 'नैषध' के 'प्रियनमृत्यु नले.........'श्लोक के साथ 'मोमिन' का एक 'शेर-"मांगा करेंगे अबसे दुआ हिजे पार की......" लिखा था, आज बिलकुल वैसा ही एक 'शेर' गालिब का नजर पड़ा- "खूब था पहले से होते जो हम अपने बदख्वाह के भला चाहते हैं और बुरा होता है।" अब यह एकार्थद्योतिका पद्यत्रयी हो गई। यदि पसन्द हो तो 'सरस्वती' में निकाल दीजिए। पद्मसिंह (२३) नायकनगला १३-६-०६ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः कृपापत्र कई दिन हुए मिला। आज अपने एक सुहृद् के भेजे हुए दो श्लोक आपकी सेवा में भेजता हूं,