पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२५

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११० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र "आर्य मुसाफिर" की जून की संख्या जिसमें "उर्दू और आजाद" है तथा जुलाई की संख्या जिसमें "हिंदू शब्द" पर आक्षेप है, भेजता हूं, पढ़िए, यदि जरूरत समझिए. तो अपने पास रहने दीजिए। ___"हिन्दू शब्द' को हमारे पूर्वजों ने कभी सादर ग्रहण नहीं किया, इसका प्रमाण- प्राचीन ग्रंथों में प्रयोगाभाव है, चाहे जिन्द में इसके अर्थ कैसे ही अच्छे हों, पर इसका प्रयोग मुसलमानों ने हमारे लिए कुत्सितार्थ समझकर ही किया है, उनके ग्रंथों से इस बात के अनेक प्रमाण स्वर्गवासी पं० लेखराम आर्य पथिक ने अपनी "हिन्दू आर्य और नमस्ते की तहकीकात" नामक किताब में लिखें हैं। इसके अति- रिक्त प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पं० सत्यव्रत सामश्रमी जी ने भी "निरुक्तालोचन" में इस बात को स्वीकार किया है, वे लिखते हैं- - "वस्तुतो यथेह भारते महम्मदीयराज्यस्थापनात् प्रागप्यपरदेशे हिन्दुरिति व्यवहार आसीदेवाधार्मिकेषु, तत उत्तरं सैव समाख्या पदाक्रोशकृतोपचरितै वास्मासु च, ततो वयमपि “हीनंच दूषयत्यस्मात् हिन्दुः" इति (मेरुतन्त्रे) व्युत्पादन मभिमत्यात्मनो हिन्दुनामकथनेपिगौरवमेव मन्यामहे"...... फिर क्या यह वैदेशिक शब्द वैदिक 'आर्य' शब्द से भी अच्छा है? कितने अफसोस की बात है, अपने पूर्वजों की अक्षय्य सम्पति में से एक नाममात्र ही शेष रह गया था, सो अब यह भी चला? क्या कोई जिन्दा कौम अपने नाम का मिट जाना इस तरह पसन्द करेगी, दूसरी कौमें अपने बड़ों की जरा जरा सी बात की रक्षा प्राणपण से करती हैं, और एक हम हैं जो अपना नाम तक नहीं बचा सकते ! “एक वो हैं जिन्हें तस्वीर बना आती है, एक हम हैं जो ली अपनी सूरत भी बिगाड़"। ये “परलोक से प्राप्त पत्र" कैसे हैं ? क्या वह आदमी जो अपनी जीवितावस्था में दुराचारी रहा हो, योगादि का जिसे कुछ भी सम्पर्क न हो वह मरते ही इतना शुद्ध हो गया कि परलोक से पत्र भेजने लगा? वैदिक धर्मावलम्बी बहुत से महात्मा योगी भारतवर्ष में मरते हैं, और मरे हैं। उनमें से किसी को यह शक्ति प्राप्त न हुई। ऐसी.निरर्गल बातों से पाठक भ्रम में पड़ सकते हैं, कहीं इस प्रकार की अधिक चर्चा से लोक 'सरस्वती' को “थियोसोफिस्ट पत्रिका' न समझने लगे? कृपा कीजिए ऐसे आत्म-ज्ञान से बाज आये। . स्तूपों का वर्णन बहुत अच्छा है, आपको तो उन्हें प्रत्यक्ष देखकर अश्रुपात हुआ था और हमें उनका हाल पढ़कर। जमाने के एक अंक में “दो कदी मशहर" एक लेख निकला है, जिसमें "तक्षशिला" और "पुष्कलावती" का वर्णन है। इस विषय पर 'सरस्वती' में भी एक लेख निकलना चाहिए; हैमलेट वाला लेख भी