पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१२६

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १११ बहुत सुन्दर है। शेक्सपीयर के अन्य प्रसिद्ध नाटकों पर ऐसे ही लेख उनसे लिखवाइए, अच्छा है। हिंदी वाले भी शेक्सपीयर को कुछ २ जान जायं। पं० गिरिधर शर्मा का ग्रीष्म वर्णन बहुत अच्छा है, और 'पवनदूत' का क्या कहना? बड़ी उत्कृष्ट कविता है, संस्कृत में भी तो शायद एक “पवनदूत" है ? "वर्णमाला स्तोत्र" का "ब्रह्मेति विष्णुरिति रुद्र इति वृथाते" पद पढ़ा। जहां तक हमें मालूम है 'वृ' संयुक्त अक्षर नहीं, हो सकता है, न 'ऋ' व्यंजन 'वृथा' के स्थान में 'प्रथा" भी नहीं लिखा जाता। शायद महाराष्ट्रों में इसका रिवाज हो! "नवीन मश्रावितदा (वा) ननादिदम्"। ___ "समय मातृका" तो हमारे पास है, "कुद्दिनीमत" अबतक नहीं देखा, सुना है, अच्छा है, कभी देखेंगे। श्री पण्डित भीमसेन जी ने 'गुमानी' कवि-कृत ये श्लोक भेजे हैं, जिनके अन्तिम चरण हिन्दी भाषा में हैं, उर्दू कविता में यह रिवाज है, उसके प्रायः प्रसिद्ध कवियों ने फारसी गजलों पर उर्दू मिसरे लगाये हैं, और उर्दू गजलों में प्राचीन फारसी गजलों के मिसरे खपाये हैं, पर अब मालूम हुआ हिन्दी कवियों ने भी ऐसा किया है, यदि पसन्द हों 'सरस्वती' में देखिए। भावत्क पद्मसिंह (२६) ओम् जालन्धर शहर ३-९-०६ श्रीमत्सु सांजलिबन्धं प्रणतयःसन्तु २७-८ का कृपापत्र मिला। कृतार्थ किया। अच्छी बात है, जब अनुकूलता देखिए तब ही तरुणोपदेश को छपवाइए। जल्दी की जरूरत नहीं। पर उसे छपा- इए अवश्य । हां, 'विक्रमांकदेवचरित चर्चा' कब छपेगी? उसके छपाने में क्यों विलम्ब हो रहा है ? और 'कुमारसम्भवसार' की भूमिका में प्रतिज्ञात, कालिदास' विषयक निबन्ध कब लिखा जायगा? विक्रमांकदेवचरित मैंने पढ़ लिया अपूर्व काव्य है। उसके कई स्थल तो मुझे इतने पसन्द आए कि मैंने उन्हें कई बार पढ़ा, तद्गत कुछ सुभाषितों का संग्रह करके