१२२ . द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पंत्र (३२) ओम् नायकनगला २०-११-०६ श्रीयुत मान्यवर पण्डित जी, प्रणाम १४-११ का 'सूक्तिकार्ड' मिला, माताजी की बीमारी का हाल पढ़कर दुःख हुआ। लिखिए, अब उनका क्या हाल है? 'प्रणयिनः' पर मेरे भाष्य (क्या प्रलाप कहना चाहिए) से जो नतीजा आपने निकाला, उससे मुझे दुःख हुआ। अपनी बुद्धि का 'बारीकपन' दिखलाने के लिए मैंने वैसा नहीं किया था, जिससे आपको अपनी बुद्धि 'मोटी' कहने की आवश्यकता हुई। न मुझे प्रणयिता' पर से ही कुछ खास 'प्रेम' या आग्रह है। यदि यह विषय मेरी राय अग्राह्य या त्याज्य है तो जाने दीजिए, मैं अपनी राय पर आपकी राय को मुकद्दम समझता हूँ, जैसा आप उचित समझें वैसा कीजिए-मेरी तरफ से आप सर्वथा-'कर्तुमकर्तुमन्यथाकत्तु समर्थः प्रभुः हैं, यह कोई जरूरी नहीं है कि जो कुछ श्लोकादि मैं आपको लिखू वह 'सरस्वती' में निकलना ही चाहिए, इसलिए 'शीतार्ता' श्लोक के लिए 'वादा' कराना मुझे भी अभीष्ट नहीं, बात यह है कि आपको पत्र लिखते समय जो अच्छा (अपनी) बुद्धि में पद्य याद आ जाता है, चित्त मजबूर करता है कि वह आपको सुनाऊं चाहे वह पहले से आपको विदित ही हो और कि इस योग्य न भी हो कि आपके सामने पेश किया जा सके। "शीत नोद्धपितस्य माषशिमिवचिन्तार्ण वे मज्जतः" में 'माषशिमिवत' पद्य का अर्थ ग्रहण हमें नहीं हुआ, पहले भी (जब इसे राजतरंगिणी में पढ़ा था।) समझने की कोशिश की थी, आप लिखिए, इसका क्या अभिप्राय है ? भारतमित्र की ओर से जो राजतरंगिणी के प्रथम तीन तरंगों का अनुवाद निकला है उसमें (शायद इसका अर्थ न समझ कर) 'मासमशिर्वम्' इस प्रकार पाठांतर की कल्पना करके–अमंगलीक महीने भर तक–अर्थ किया है। 'देहाती' वाला वह श्लोक 'नागरिक कक्षा' में प्रविष्ट होने योग्य है । पर इसमें 'बहुरतीव नितम्बः' के 'बहुः' शब्द का सम्बन्ध किसके साथ है? इस दशा में यह क्रिया विशेषण तो है नहीं? फिर यदि इसे 'नितम्बः' का विशेषण माना जाय तो क्या अर्थ होगा? क्या भारी? . "विलम्बसे जीवित ! किं द्रवद्रुतं ज्वलत्पदस्ते हृदयं निकेतनम् ।
- जहासिनाद्यापि मृषासुखासिकामपूर्व मालस्यमिदं तवेदृशम् ।