पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५६

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१४२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र पड़ने से हिंदी को कम हानि नहीं पहुँचेगी। बा० विश्वम्भर नाथ जी ने आप की मुलाकात का हाल मुझे लिखा था, बीमारी के कारण पत्र व्यवहार न कर सकने से जो आपने यह नतीजा निकाला था कि मैं आपको भूल गया, यह ठीक नहीं। मैं और आपको भूल सकता हूँ !! ! यदि यह सम्भव हो “तदात्मानमपि विस्मरिक्ष्यामि" ____ "विद्यावारिधि" जी कृत सतसई टीका के नमूने मैं आपको दिखलाऊँगा जरा हाथ को आराम हो जाय। तब आप कहेंगे कि टीका हो तो ऐसी हो! ! यदि आपका "समालोचक" निकले तो मैं भी यथाशक्ति उसमें योग दूंगा। यहां के गुरुकुल वाले चाहते हैं कि आपने जो अभी "अर्थशास्त्र" पर पुस्तक लिखी है, वह उन्हें दे दी जाय, यहां के पाठ्य पुस्तकों में उसे रखना चाहते हैं, उसके विषय में इतनी बातें जानना चाहते हैं- (१) पुस्तक कितनी बड़ी है (२) किसी एक पुस्तक के आधार पर लिखी गई है वा बहुतों के या स्वतन्त्र रचना है, यदि पुस्तकों के आधार पर है तो उन पुस्तकों के नाम लिखिए। 'मिसफासिट' की जो इस विषय पर किताब है उससे कितनी बड़ी या छोटी है। उसे आप कितने रुपये लेकर दे देंगे। मेरी सम्मति में आप वह किताब जरूर गुरुकुल को दे दीजिए। यहां उसकी जरूरत है । और आप उसे कहीं देंगे ही। यहां के ब्रह्मचारी हरिश्चन्द्र यह मालम करना चाहते हैं कि संस्कृत कवियों के बारे में अंग्रेजी, मराठी, गुजराती, बंगला या हिंदी में जो पुस्तकें हों उनका पता आपदें। 'अर्थशास्त्र' का मैन्यूस्क्रिप्ट भी यह देखना चाहते हैं, सो प्रथम उपर्युक्त वातों का उत्तर दे दीजिए, पीछे देखा जायगा। उत्तर आप मुख्याधिष्ठाता गुरुकुल को दीजिए, या मेरे नाम लिखिए। ___ मैं आज लाहौर जाता हूँ, वहां से ३-१२ तक यहाँ आऊँगा और फिर दो एक दिन ठहरकर घर जाऊँगा। कृपापात्र पद्मसिंह