पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१५९

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १४५ बार बार आपको कष्ट देते हुए लज्जा आती है, पर उनकी बढ़ी हुई जिद्द मजबूर कर रही है। मेरे एक और सुहृद् पं० रलाराम जी काशी जाते हुए रास्ते में आपके दर्श- नार्थ कानपुर उतरना चाहते हैं, उन्होंने मुझे लिखा है कि मैं इस विषय की सूचना आपको दे दूं, वह ५ जनवरी से पहिले ही कानपुर पहुंचेंगे। अमृतसर में हीरासिंह का चित्र और चरित्र प्राप्त करने के लिए मैं एक अपने वाकिफ विद्यार्थी को लिखता हूँ, शायद वह भेज सके। कृपापात्र पद्मसिंह (५०) ओम् नायकनगला श्रीयुत मान्य महोदयेषु प्रणतयः ३१-१२ का कृपापत्र मिला। आशा है पं० रलाराम जी आपसे मिले होंगे। ऐसे आदमी के लिए भला मैं क्यों सिफारिश करने लगा जो पुस्तक हजम कर जाय। 'सोमलता' वाला लेख जरूर 'सरस्वती' में निकलना चाहिए, इस बेचारी को तो आजकल लोग सर्वथा भूल ही गये, वैदिक जमाने में इसकी बड़ी कद्र थी, बहुत दिन हुए इटावे में पं० भीमसेन जी ने एक मारवाड़ी सेठ की सहायता से अग्निष्ले यज्ञ रचा था, तब हमने इसके दर्शन किये थे। रीवां की रियासत में कोई पहाड़ है वह वहाँ से मंगाई गई थी, सुना है वहाँ बहुत होती है। जालन्धर छावनी में एक महाशय लाला देवीदयाल हैं। उन्होंने उर्दू में 'सब्जी तरकारी', 'फूल', 'दरख्त', 'घास चारा' आदि कई किताबें लिखी हैं, इन्हीं किताबों में किसी एक में (नाम याद नहीं रहा ) एक लेख मोमलता पर भी है, जो बहुत ही अन्वेषण से लिखा गया है, यदि आप अपने लेख को और पल्लवित करना चाहें तो उसे भी देख लीजिए।