१५६ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ___ 'सरस्वती' में 'वेद और आर्य-पर लेख पढ़कर बहुत से श्रद्धालु आर्य विचलित हुए हैं, इस विषय में बाहर से कई पत्र यहाँ भी.आये हैं, नमूने के लिये एक कार्ड भेजता हूं, लेखक की बदहवासी और घबराहट का इसी से अनुमान कर सकते हैं कि बेचारा अपना नाम लिखना तक भूल गया है। बि० एन०जी ने एक अपील आर्यमित्र में छपाई है, लिखा है कि "मुझे दोगला (?) जनूनी, मच्छर, जुगनू इत्यादि लिखा है, बापदादा तक गालियां दी हैं। नाटक और वेदार्थ छापकर सिद्धान्त विरुद्ध कारवाई की है, और यह सब कुछ परोपकारिणी के मुखपत्र में हुआ है, इसलिए इसकी उत्तरदायिता सभा पर है, महाराजा शाहपुरा- धीश को ध्यान देना चाहिए," इत्यादि बहुतया असम्बद्ध प्रलाप किया है, सभा के इजलास में (जो २४-२५-१० को होगा) यह विषय पेश करने की भी प्रार्थना की है, एक दरख्वास्त भेजी है, अस्तु, उसके उत्तर में एक लेख आर्यमित्र' में भेजूंगा। ___पं० गौरीदत्त जी वाजपेयी अब कहां हैं ? जाड़े का बुखार का आजकल खूब जोर है, जरा सावधान रहिएगा। कृपापात्र पद्मसिंह श. (५७) आम अजमेर २२-९-०८ मान्यवर पण्डित जी महाराज प्रणाम . कृपापत्र मिला। निद्रानाश की दो औषध ला० हरिश्चन्द जी के हाथ भेजी है। आज आशा है आपको मिली होगी। उनका सेवन करके लिखिए, जो अनुकूल पड़े वही जितनी कहिए यहाँ से भेज दी जायगी। बाणभट्ट भी भेजा है। 'भर्तृहरि- निर्वेद' नाटक पं० गणपति शर्मा भरतपुर ले गये हैं, उन्हें पत्र लिखा है, आ जाने पर यदि उसमें गोपीचन्द चित्र के अनुकूल कुछ मिला तो शंकर जी को लिख भेजूंगा। आज शंकर जी का पत्र आया है, अपना चित्र और चित्रों पर कविता यह सब अक्टो- बर में आपके पास भेजने को लिखते हैं, गनीमत है। 'सरस्वती' के 'वेद' और 'आर्य' के लेखों ने आर्यों में खलबली डाल दी है। ८-१० चिट्ठियां मेरे पास आ
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