पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १६५ था। "वक्रः पन्था यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तराशां" कवि के इस मेधादेश पर चल पड़ा। इस भूमि को देखकर हृदय में भावों का समुद्र उमड़ रहा है। हां, क्या यह वही "श्री विशाला विशालागपुरी है" ? क्या इसी जगह कालिदास ने अमृत- मयी कविता लिखी थी? विक्रम की राजधानी यही है ? विश्वास नहीं आता। करुणा से हृदय भरा आता है। संसार की अनित्यता का चित्र आंखों में फिर रहा है, हा दैव! अस्तु, यह कथा कभी फिर लिखूगा। ___ आपका कार्ड मुझे अजमेर मिल गया था, अच्छा हुआ बी० एन० जी ने माफी मांग ली। अब शायद 'मित्र' वाले भी मान लें। आपके एक वाक्य ने (चाहे वह परिहास ही हो) मुझे बड़ी वेदना पहुंचाई "कहिए उसकी (सितम्बर की 'सरस्वती') क्यों जरूरत पड़ी? क्या कुछ और हमें सुनाइएगा? क्या सचमुच आप ऐसा ही समझते हैं ? अफसोस !! फोटो ओझा जी दौरे में अपने ले गये थे। अब अजमेर पहुंच कर भेज दूंगा। २५-२-०९ तक अजमेर जाऊंगा। वहां एक दिन ठहरकर फिर ज्वालापुर। कृपाकांक्षी पद्मसिंह श. . He (६८) ओमू रिप्लाइड अजमेर १-३-०९ २२-२-०९ पंडित जी महाराज प्रणाम २४-२-०९ का कृपापत्र आज यहां आकर मिला। मुझे मार्ग में कई दिन अधिक लग गये, इसलिए प्रोग्राम बदल गया। उज्जैन और चित्तौरगढ़ से बड़ी मुश्किल से पीछा छुटा। आने को जी नहीं चाहता था। आज शाम को या कल प्रातः काल यहां से ज्वालापुर को चलूंगा। अपने पास रखने के ख्याल से नहीं किंतु आबोहवा की उम्दगी के लिहाज से और प्राकृतिक दृश्यों के लिहाज से भी ज्वालापुर सर्वथा उचित स्थान है। आप जितनी बातें चाहते हैं, सब वहां है। कहिए तो किसी डाक्टर का साटि- फिकेट इसके सबूत में भेज दें, विशेष वहां पहुंच कर लिलूँगा।
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