पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१८०

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र नई 'सरस्वती' में कालिदास पर आपका लेख पढ़कर चित्त प्रसन्न हुआ। "दौपदीदुकूल" बहुत ही माकूल है। गुप्त जी को धन्यवाद । शंकर जी का चित्र और वे दोनों कविताएं जो उन्होंने हाल में भेजी हैं शीघ्र निकालिए। कवियों को बेदिल नहीं करना चाहिए। बी० एन० का क्षमाप्रार्थना मैंने अभी नहीं पढ़ा। कृपापत्र पद्मसिंह शर्मा . (६९) ओम् रिप्लाइड नायकनगला (जवाब दिया गया) २०।३।०९ पो० आ० चांदपुर जिला-बिजनौर १८-३-०९ श्रीयुत मान्यवर पंडित जी महाराज प्रणाम म० वि० ज्वालापुर के उत्सव से मैं यहां ८-१० दिन के लिए चला आया था। अब दो चार दिन में वापस जाने वाला हूं। आपके ९-३-०९ तथा १३-३-०९ के दोनों कृपापत्र म० वि० से लौटकर मुझे आज ही यहां मिले हैं। वहां से लौटने पर मेरी तबीयत कई दिन खराब रही। आपको पत्र न लिख सका। ज्वालापुर में आशा है आपके अनुकूल सब प्रबंध ठीक हो जायगा। जाड़ा बहुत तो नहीं पर अभी रात को सरदी खासी हो जाती है। बिछौना, एक रजाई और कम्बल साथ लाना काफी होगा। अल्मोड़े में खूब सरदी होती है इसलिए यदि वहां जाना हो तो गरम सूट भी साथ लांइए। नौकर के विषय में म० वि० पहुंच कर लिखूगा कि वहां मिल जायगा या नहीं। एकार्थ या सस्त्रीक जैसे आप आवें, मकान का प्रबंध हो जायगा। आर्यमित्र के संपादक बदल गये। पं० देवदत्त शास्त्री के अनुज भवदेव शास्त्री गये हैं। उन्हें संपादन का अभी तजरवा नहीं, लेखों का क्रम प्रायः अस्त ब्यस्त रहता है। संभव है इस कारण बी० एन० जी की माफी उचित स्थान पर न छपी हो। .. इस में संदेह नहीं किं कुछ महात्माओं की विचित्र लीला से आ० समाज बदनाम और असर्वप्रिय होता जाता है, दैवगति।