पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१८६

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१७२ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र हिंदी कोविदरत्नमाला भेज दीजिए तो उसपर कुछ लिखें। भारतोदय का २रा, अंक पहुंचा होगा। उत्तर म०वि० के पते से ही भेजिए। हां, वे दोनों किताबें पढ़ीं। कृपापात्र पद्मसिंह शर्मा (७३) ओम् म०वि० ज्वालापुर ५-८-०९ माननीय पण्डित जी महाराज प्रणाम मैंने शिमले से एक कार्ड भेजा था, पहुँचा होगा। मैं परसों यहाँ आया हूँ। आज 'सरस्वती' मिली। खोलते ही चक्कर में डालनेवाले चित्र की चर्चा उठी, उसे देखते ही ४-५ मिनिट में हमारे मित्र पं० द्वारकाप्रसाद जी ने विशद रूप से उसका स्पष्टीकरण कर दिया, चित्र के छचों, चेहरे साफ २ बतला दिए। सो इस प्रकार कि दो भारी चेहरे गमले की जड़ में, दोनों तरफ। एक दाहिनी तरफ जरा लंबी गरदन वाला। और एक उससे कुछ ऊपर को तथा ५वां, बायें तरफ उसी के सामने कुछ नीचे को झुका हुआ । यदि यह स्पष्टीकरण ठीक हो तो लिखिए। बा० मैथिलीशरण जी की 'स्वर्गसहोदर' कविता बड़ी उत्तम है। इत्तफाक' से पं० वासुदेव गायक आजकल यहाँ हैं, उन्होंने उसे ऐसे स्वर से पढ़ा कि आनन्दा- तिरेक से अश्रुपात होने लगा। कवि जी के अविश्रान्त गामिनी रस निष्पन्दिनी लेखनी को धन्य है। वर्षा विषयक दोहे अच्छे हैं, पर न जाने किस कवि के हैं ? यदि किसी नवीन कवि के हैं तो आश्चर्यजनक है। पं० रुद्रदत्त जी ने सूरदास के इस पद की बड़ी प्रशंसा की थी- "सूर-खान के पालन 'हारे आवैगी तोहे गारी।" पर उन्हें इतना ही याद रह गया था, हमने और भी कई आदमियों से पूछा पर पता न चला, इस पूरे पद को यदि 'सरस्वती' द्वारा आप पूछ दें तो अच्छा हो, रचित हो तो अब के दे दीजिए। किसी को तो याद निकलेगा। मि० भा०बि० प्रति० में इस बार कई अशुद्धियां रह गई यथा-२रा, श्लोक इस प्रकार चाहिए