पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१८८

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१७४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (७५) अहार २०-८-०९ श्रीयुत माननीय महोदयषु सादरं ..प्रणामाः गत सप्ताह एक कार्ड और कविताकलाप, मिला। इस कृपा के लिए कोटिशः धन्यवादाः। कविताकलाप ठीक उस वक्त मिला जब हम बिस्तरा बांधे दौरे में चलने के लिए बिलकुल तयार थे। उसके सहारे सफर बड़े आराम से कटा। पं० वासुदेव गायन हमारे साथ हैं, उन्होंने उसकी कारुणिक कविताएँ गाकर खूब रुलाया। खासकर 'अशोकवासिनी सीता' का विलाप सुनकर तो चित्त की अजीब हालत होती थी। ये भावभरे दोहे लिखकर तो बा० मैथिलीशरण जी ने 'बिहारी' से हाथ मिलाया है। बार्हस्पत्य जी का यह खयाल बिलकुल गलत निकला कि.... "केशों की कथा" के बाद अब गुप्त जी वैसी कविता न कर सकेंगे।.... सहृद- यता इसकी साक्षी है कि ये दोहे....कथा' की कविता से भी उत्कृष्ट हैं, तोल में छोटे होने पर पर.भी मोल में बड़े हैं। मेरी राय में तो यदि और कुछ भी न लिख- कर मैथिलीशरण जी सिर्फ यही दोहे लिखते तो यही उन्हें कविता के ऊँचे आसन पर बिठाने को काफी थे। यह देखकर दुख हुआ कि दुर्वासा के शाप वाला चित्र और कविता इसमें क्यों संमिलित नहीं की? आपने तो उसके लिए लिखा था? यह कमी मुझे बराबर खटकती है। मैं तो समझे बैठा था कि वह इसमें जरूर निकलेगा। अफसोस अब इसका कुछ इलाज नहीं रहा। एक बात की और कसर रह गई, चित्रों पर एक एक पतला कागज और चाहिए था, रंगीन चित्रों में बैजनी रंगवाले चित्रों का रंग 'उत्पतिष्णु' है, वह उड़ जाता है, बिना कागज के चित्र खराव हुए जाते हैं। अस्तु, पुस्तक के चित्र और कविताएं सब ही मनोहर हैं, बस इतनी ही कमी है कि वे सब चित्र नहीं जिनपर कविताएं भी निकल चुकी हैं। 'गालिब' से किसी ने पूछा था कि 'आमों में क्या क्या गुण होने चाहिए", कहा कि “मीठे हों और बहुत हों"-सो आप मीठे तो हैं, पर थोड़े हैं। एक बात और हमारी समझ में नहीं आई, चित्रावली में १ला, नंबर पूरण जी को किसलिए मिला है? आशा है आप अच्छे होंगे। कभी कभी कुशल पत्र भेजते रहिए, हो सका तो 'सरस्वती' के लिए कुछ लिखूगा। सतसई की समालोचना चलाइए। बहुत दिन हो गए। पं० शिवशंकर काव्यतीर्थ वेदों पर सरस्वती में कुछ लिखना चाहते हैं, स्थान