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पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१९३

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम कहना चाहिए था वही वह कह कर अपना फर्ज अदा करने की चेष्टा उसने की है। मैं तो आपका वैसा ही नियाजमन्द और वशंवद सेवक हूँ, मेरा हादिक भाव आपसे छिपा नहीं है, इस कारण मुझे संतोष है कि इस चेष्टा का कुछ और अभिप्राय न समझा जायगा। कृपापात्र पद्मसिंह शर्मा (७९) ओम् अजमेर श्रीयुत माननीय पंडित जी महाराज प्रणाम कई दिन हुए श्रीमान् का कृपापत्र मिला था। इस बीच में मेरी तबीयत कुछ खराब रही, इसलिये उत्तर में विलंब हुआ। आज्ञानुसार सतसई की आलोचना जितनी साफ की हुई थी भेजता हूँ, बाकी ठहर कर भेजूंगा। इसमें आप जहाँ जहाँ परिवर्तन की बहुत ही आवश्यकता समझें वहाँ वहाँ कुछ कुछ रद्दोबदल कर दीजिए (हास्यरस को कायम रखकर)। ____ कृपा करके इस लेख का 'नामकरण संस्कार' भी आप ही कर दीजिए मुझे कोई अच्छा नाम नहीं सूझा, इसमें 'लीला' के लक्षण पर जो सा० द० का श्लोक है, यदि आवश्यकता समझिए तो उसका हिंदी अनुवाद कर दीजिए। इस. रूप में इस आलोचना के देने का कारण आप स्वयं ही लिख दीजिए। मेरे उस पत्र से भी दो एक पंक्ति चाहे उद्धृत कर दीजिए। तथापि स्वयं भी कुछ लिख दीजिए। इसे शीघ ही, अगली संख्या से निकालना शुरू कीजिए। यदि हो सके तो भूमिका की आलोचना (जितनी इस समय भेजता हूँ) एक साथ ही...दीजिए। ..... इसमें जो महाविरे आदि की अशुद्धियां हों उन्हें ठीक कर दीजिए, और शुद्ध छपने का भी ध्यान रहे, क्योंकि यह विवादात्मक लेख है, इसकी मामूली-मामूली बातों पर भी युद्ध छिड़ जाने की संभावना है। २-११ श्लोक और उतने ही उनके अनुवादन स्वरूप या समानार्थक, हिंदी भाषा के दोहे, छंद आदि भेजता हूँ। इन्हें सरस्वती में अवश्य निकाल दीजिए, किसी एक ही संख्या में, पर शीघ्र ही, खटाई में न डाल दीजिए। फिर और भी भेजूंगा मेरी राय में यह सिलसिला रोचक और काम का है। देखिए न आजाद' ने 'आबे