पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१९९

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १८५ 'शिक्षा' में 'मर्यादा' की समालोचना करते हुए एक महाशय ने लिखा है. मर्यादा में बा० मै० श० जी की भी कविताएं होती है, सुना है बा० मै० श० की प्रतिज्ञा थी कि मैं 'सरस्वती' को छोड़कर और कहीं न लिखूगा" इत्यादि। एक छोटी सी कविता हमने भी बा० मै० श० जी से 'भारतोदय' के लिए लिखाई है, उससे उक्त समालोचक की उस ध्वनि का खंडन हो जायगा, अर्थात् जब उक्तः कवि 'भारतोदय' जैसे रद्दी पत्र में कविता दे सकते हैं तो मर्यादा के लिए यह कोई फरक की बात नहीं। इससे केवल कवि की उदारता ही प्रकट होती है। ठीक है न? इसे ध्यान में रखकर मै० श० जी को 'सामान्याः' का खिताब न दीजिए, यह प्रार्थना है। एक हफ्ता हुआ हरद्वार में अमेरिका से लौटे हुए मि० भोलादत्त पांडे का विधि- वत् प्रायश्चित हुआ था, उस समय हमें भी उनके दर्शन हुए, बेचारों को बिरादरी ने बुरी तरह तंग कर रखा है, परेशान हैं। कहते थे हमने एक आर्टिकल 'सरस्वती' को भेजा है, जाने छपेगा या नहीं। आपने आशा दिलाई थी, पर शुक्ल जी का पत्र हमें नहीं मिला। 'सरस्वती' में शुक्ल जी का चित्र छाप दीजिए तो हमें भी उनके दर्शन हो जायं। 'राम' वाला असल लेख मिला या नहीं? ___ म०वि० का उत्सव १२, १३, १४, १५ मार्च को होगा इस बार तो अवश्य पधारिए ।बड़े पंडित जी और नरदेव जी का विशेष आग्रह है। कृपापात्र पद्मसिंह शर्मा (८५) ओम् महाविद्यालय, ज्वालापुर . २२-३-११ श्रीयुत माननीय द्विवेदी जी महाराज प्रणाम १.३-३ का कृपापत्र यथासमय मिल गया था, उत्सव के कार्य में व्यग्न रहने के कारण उत्तर में विलंब हुआ। यह ठीक है कि आपने कुछ लिखने का इसरार नहीं किया, परन्तु मैं तो आपके इशारे को ही इसरार से बढ़कर मानता हूँ, और चाहे आप इशरान भी करें, तो भी आपके विरुद्ध लिखनेवाले के विरुद्ध कुछ लिखने को स्वयं जी चाहा करता है,