पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२०१

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १८७ बिंब प्रतिबिंब वाले पद्य सब निकल चुके या अभी कुछ बाकी पड़े हैं? यदि बाकी है तो कितने एक ? उनमें से कुछ ऐसे तो नहीं है जो प्रकाशित करने योग्य न समझ कर रख छोड़े हों? यदि कुछ ऐसे हों तो मुझे लौटा दीजिए। मेरा विचार है कि ऐसे पद्यों की सौ संख्या पूरी हो जाने पर (और 'सरस्वती' में प्रकाशित हो चुकने पर) उन्हें पृथक् ट्रेक्ट के रूप में छपवाऊँ। क्या कृपा करके आप यह बतला सकेंगे कि बिंब प्रतिबिंब वाले पद्य सरस्वती की कितनी संख्याओं में निकल चुके हैं ? मेरे पास सरस्वती का पिछला पूरा फाइल नहीं है, और न पद्यों की नकल है, इसलिए यह कष्ट आपको देना चाहता हूँ। आज 'इस प्रकार के १६ पद्य और भेजता हूँ, इन्हें भी प्रकाशित करने की कृपा कीजिए। 'असम्भुखालोकन अभिमुख्यं" और इसके प्रतिबिंबवाले पद्य को देखिए कैसा मजे- दार है !! 'किमसुभिर्लपितर्जडमन्यसे" का भाव 'रसलीन' ने अपने दोहे में कैसा भरा है ? पहले मुसलमान हिंदी कवियों को भी संस्कृत का कितना बोध होता था ? ___आजकल 'अभ्युदय' के संपादक कौन हैं ? क्या "हालना" जी अब वहाँ नहीं हैं ? क्या 'मर्यादा' स्वयं भी 'सरस्वती' के विरुद्ध कुछ बोली है ? या 'अभ्युदय' को ही अपना वकील बनाया है। भवदीय पद्मसिंह शर्मा (८७) . महाविद्यालय ज्वालापुर ३-१०-११ 'श्रीमत्सु सादरं प्रणतयः ____ कृपापत्र और कंपोजित ( ? ) उत्तर मिला, कल 'सरस्वती' भी मिली, 'बहुत दिनों बाद आपकी कविता पढ़कर जी खुश हुआ, गद्य लेख भी पढ़ा, मालूम होता है अब के सा० सम्मेलन का मैदान आपके ही हाथ रहा? अफसोस, उस मौके पर 'यार था गुलजार था, बादे सबा थी मैं न था।-