पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२५

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बालमुकुन्द गुप्त जी के पत्र पं० श्रीधर पाठक जी के नाम २११ इस बार मैं मथुरा आकर आपका दर्शन न कर सका यह बड़े ही अभाग्य की बात है। क्या करूं मुझपर जो झंझट गृहस्थाश्रम के पड़ रहे हैं उसी में डूबा रह जाता हूँ। सावित्री स्तम्भ की हिमायत में एक चिट्ठी इस बार छपी है। समालोचनायें इस कवि नहीं, इस कविता का एक अक्षर टूट गया। शेष का झगड़ा अब बन्द हुआ। १. अक्षरों पर क्या भारतमित्र दुर्गा पूजा का निकलेगा। पिछले साल तो आपकी भारी प्रतिज्ञा थी। परन्तु इस साल आप मुझपर शायद कम प्रसन्न हैं। इससे विनय है कि यदि कुछ लिख सकें तो बड़ी कृपा होगी। २५, २६ सितम्बर तक लेख मिलना चाहिए। .. भवदीय दास बालमुकुन्द गुप्त (११) गुरियानी १६-४-९१ पूज्यवर प्रणाम ८ तिथि के पत्र का धन्यवाद । आशा है कि कुछ काल आप मुझपर ऐसी ही दया रक्खेंगे। गुरयानी में एक भी सारस्वत नहीं है। यह देश पंजाब वास्तव में नहीं है बरंच गौड और अग्रवालों का देश है । सिरसा यहां से १२५ मील है। रेल बनी है और यह स्थान दिल्ली से ४० मील है। मुझे यह न मालूम हो सका कि सिरसा में सारस्वतों के कितने घर है, परन्तु वहां से सारस्वतों का देश आरम्भ होता है, उससे १०० मील के भीतर फीरोजपुर, लाहोर, अमृतसर सब हैं। अब तक मैं लारी का दूसरा रीडर पढ़ता था, उसका हिंदी अनुवाद भी था परन्तु अब चौथा पढ़ता हूँ। तीसरा नहीं था और अनुवाद भी नहीं है। इससे अंग्रेजी हिंदी दोनों की कापी भेजता हूँ। कृपा करके ध्यान से देखियेगा और यथावकाश देखिये, बड़ी जल्दी नहीं है। - सेवक बालमुकुन्द गुप्त पं० श्रीधर पाठक जी को