पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२३

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र आप यदि मनोरंजक और उपयोगी कविताएँ और लेख 'सरस्वती' के लिए भेजेंगे तो हम उनको सहर्ष और सधन्यवाद छापेंगे। 'सरस्वती' के स्वामी उसे अगले वर्ष से बन्द करना चाहते हैं। परन्तु हमारी...... इस बात का निश्चय नहीं हुआ। ग्राहकों की संख्या भी सवाई बढ़ी है, व्यय भी इस साल बहुत ही कम हुआ है, परन्तु आरम्भ से लगाकर आज तक उनका बहुत व्यय हुआ है। इसीलिए जारी रखते वे घबराते हैं। अगर 'सरस्वती' जीवित रही और हम उसे लिखते रहे तो लेख इत्यादि छपेंगे, नहीं तो सब धरे ही रह जायंगे। हमारे पास न मालूम कितने पड़े हैं। 'सरस्वती' जारी रहने से हम आपके लेख अवश्यमेव छापेंगे। आप लिखने का अभ्यास बनाए रहिए। आप तो विद्वान् हैं, अभ्यास से निपट मूढ़ विख्यात लेखक हो जाते हैं। संस्कृत के जिस ग्रंथ' का आप अनुवाद कर रहे हैं, कीजिए। समाप्त होने पर हम उसे देखेंगे। आपकी कृति को देखना ही क्या है, आपके पत्र की रचना ही देखकर हमको आनन्द आता है, ग्रंथ देखकर तो और भी अधिक प्रमोद होगा। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी झांसी २४-९-०३ प्रिय महोदय कृपापत्र आया । श्रीमान् की उदारता ने तो हमारे हृदय पर बड़ा ही असर पैदा किया है। हम यही ईश्वर से प्रार्थी हैं कि आपकी यह नवीन चिन्ता शीघ्र ही दूर हो जावे। १. श्री जनार्दन झा 'जनसीवन' जी उन दिनों मैथिल महाकवि विद्यापति ठाकुर के 'पुरष परीक्षा' ग्रन्थ का हिंदी अनुवाद कर रहे थे। उसी के विषय में उन्होंने द्विवेदी जी को लिखा था। समय पाकर उनका वह अनूदित ग्रंथ पुस्तकभंडार (लहरियासराय) से प्रकाशित हुआ।