द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीवन' जी के नाम श्रीमान ने बड़ी ही कृपा की जो 'सरस्वती' के लिए लेख लिखे। दीनबंधू बाबू का चरित शीघ्र ही भिजवाइए-फोटो समेत। आप 'सरस्वती' में छपने को जो लेख भेजें उनकी सरलता पर अधिक ध्यान रखें। 'सरस्वती' की भाषा के काठिन्य के विषय में बहुत शिकायतें आती हैं। यह पता आपको कैसे मिला कि हमारे के........पुत्र भी हैं—न हमारे पुत्र न पुत्री। . हम अपने वंश में कूलद्रुम हो रहे हैं। वृद्धा माता और स्त्री के सिवाय हमारा और कोई निकट सम्बन्धी अथवा कुटुम्बी नहीं। __ श्रीमान को देने लायक हमारे पास अपनी फोटो नहीं। तैयार कराके किसी समय हम भेंट करेंगे। हमारा चित्र श्रीमान ने अपने पास रखने योग्य समझा, इस- लिए हम आपके कृतज्ञ हैं, यह हमारे लिए गौरव की बात है। हमने आपको धन-सम्बन्धी सहायता के विषय में जो 'सरस्वती' का अपील लिखने को कहा था उसे लिखने को मना किया और लेख लिखने को नहीं मना किया, और जो आप जितने ही लिखेंगे उतना ही अधिक हम आपको धन्यवाद देंगे। वे दो कविताएँ जो आपने भेजी हैं उनका शेष भाग भी कृपा करके भेज दीजिए। 'सहायता' से हमारा अभिप्राय धन-संबंधी सहायता से है। ___ हमको यह जानकर बहुत सन्तोष और प्रसन्नता होती है कि आप 'सरस्वती' के ग्राहक बढ़ाने की चेष्टा कर रहे हैं। ऐसी ही दया बनाए रखिए। भवदीय महावीरप्रसाद द्विवेदी झांसी १२-११-०३ प्रिय महाशय आपका कृपापत्र और निमंत्रणपत्र दोनों प्राप्त हुए। ईश्वर करे आपका यह सदनुष्ठान निर्विघ्न समाप्त हो। आपके श्रीमान की उदारता का परिचय हमको मिल चुका है । क्यों न ऐसे अच्छे कास में वे सहायता दें। हमको बाबू नरनाथ झा की कविता छापने में उजर नहीं है। परन्तु ७०० कुंडलियों के लिए सात वर्ष नहीं तो ५ वर्ष अवश्य चाहिए। ऐसी बड़ी पुस्तक अलग
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